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________________ देहात्मवादी मान्यता के आधार पर उनकी नीति सम्बंधी अवधारणाओं को निम्न शब्दों में प्रस्तुत किया गया है यदि शरीर मात्र ही जीव है, तो परलोक नहीं है। इसी प्रकार, क्रियाअक्रिया, सुकृत-दुष्कृत, कल्याण-पाप, भला-बुरा, सिद्धि-असिद्धि, स्वर्गनरक आदि भी नहीं हैं। अतः, प्राणियों के वध करने, भूमि खोदने, वनस्पतियों को काटने, अग्नि को जलाने, भोजन पकाने आदि क्रियाओं में भी पाप नहीं है। . प्रस्तुत ग्रंथ में देहात्मवाद की युक्ति-युक्त समीक्षा न करके मात्र यह कहा गया है कि ऐसे लोग, हमारा ही धर्म सत्य है- ऐसा प्रतिपादन करते हैं और श्रमण होकर भी सांसारिक भोग विलासों में फंस जाते हैं। इसी अध्याय में पुनः पंचमहाभूतवादियों तथा पंचमहाभूत और छठवां आत्मा मानने वाले सांख्यों का भी उल्लेख हुआ है। प्रस्तुत ग्रंथ की सूचना के अनुसार पंचमहाभूतवादी स्पष्ट रूप से यह मानते थे कि इस जगत् में पंचमहाभूत ही सब कुछ हैं, जिनसे अर्थात् पंचमहाभूतों से हमारी क्रिया-अक्रिया, सुकृतदुष्कृत, कल्याण-पाप, अच्छा-बुरा, सिद्धि-असिद्धि, नरकगति या नरक के अतिरिक्त अन्य गति, अधिक कहां तक कहें, तिनके के हिलने जैसी क्रिया भी होती है, क्योंकि आत्मा तो अकर्ता है। उस भूतसमयाय (समूह) को पृथक्-पृथक् नाम से जानना चाहिए जैसे कि- पृथ्वी एक महाभूत है, जल दूसरा महाभूत है, तेज तीसरा महाभूत है, वायु चौथा महाभूत है और आकाश पांचवां महाभूत है। ये पांच महाभूत किसी कर्ता के द्वारा निर्मित नहीं हैं और न ही ये किसी कर्ता द्वारा बनाए हुए हैं, ये किए हुए भी नहीं हैं, न ही ये कृत्रिम हैं और न ये अपनी उत्पत्ति के लिए किसी की अपेक्षा रखते हैं। ये पांचों महाभूत आदि एवं अंत रहित हैं तथा अवध्य और आवश्यक कार्य करने वाले हैं। इन्हें कार्य में प्रवृत्त करने वाला कोई दूसरा पदार्थ नहीं है, ये स्वतंत्र एवं शाश्वत नित्य हैं। यह ज्ञातव्य है कि जैनागमों में ऐसा कोई भी संदर्भ उपलब्ध नहीं होता है कि जिसमें मात्र चार महाभूत (आकाश को छोड़कर) मानने वाले चार्वाकों का उल्लेख हुआ हो। प्रस्तुत ग्रंथ में पंचमहाभूतवादियों के उपर्युक्त विचारों के साथ-साथ पंचमहाभूत और छठवां आत्मा- ऐसे छः तत्त्वों को मानने वाले विचारकों का भी उल्लेख हुआ है। (172)
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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