________________ मेलिमिंद, शेषेन्द्र। मुकुली-दिव्वाग, गोणस, कसाहीय, वइउल, चित्तली, मण्डली, माली; अहि अहिसलाग, वासपताका (35) / / भुजपरिसर्प- ये अनेक प्रकार के हैं - नकुल, सेह, सरड (शरट), शल्य, सरंट, सार, खोर, धरोइल (गृहकोकिल-छिपकली), विस्संभर, मूषक, मंगुस, पयलाइल (प्रचलावित), क्षीरविरालिय, जोह चतुष्पाक (35) / नभचर- ये चार प्रकार के होते हैं - चर्मपक्षी, लोमपक्षी, समुद्गह पक्षी और विततपक्षी। चर्मपक्षी-बागुली, जलोय, अडिल्ल, भारंड पक्षी, जीवंजीव, समुद्रवायलं, कण्णत्तिय, पक्षीविरालिका लोकपक्षी-ढंक, कंक, कुरल वायस, चक्रवाक, हंस, कलहंस, राजहंस, पायहंस, आड, सेडी, बक (बगुला), बलाका (बगुलों की जाति), पारिप्लव, कौच, सारस, मेसर, मसूर, मयूर, सप्तहस्त, गहर, पुण्डरीक, काक, कार्मिजुय, वंजुलग, तीतर, वट्टग (बतक), लावक, कपोता, कर्पिजल, पारावत, चटक (चिड़िया), चास, कुक्कुड (मुर्गा), शुक, बी (मयूर), मदनशलाका, कायेल, सेह वरिल्लग (35) / मनुष्य-मनुष्य तीन प्रकार के हैं - कर्मभूमक, अकर्मभूमक और अन्तरद्वीपक। अन्तरद्वीपक-एकोस्क, आभासिक, वैषाणिक, नांगोलिक, हर्यकर्ण, गजकर्ण, गोकर्ण, शष्कुलीकर्ण, आदर्शमुख, मेंढमुख, अयोमुख, गोमुख, अश्वमुख, हस्तिमुख, विद्युन्मुख, व्याघ्रमुख, अश्वकर्ण, आकर्ण, कणप्रायरण, उल्कामुख, मेघमुखं, विद्युतन्मुख, विद्युदन्त, घनदंत, लष्टदंत, गूढदंत, शुद्धदंत (26) / . अकर्मभूमक तीस होते हैं- पांच हैमवत, पांच रिणयवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देवकुरु, पांच उत्तरकुरु (36) / कर्मभूमक तीस होते हैं - पांच भरत, पांच ऐरावत, पांच महाविदेह। ये दो प्रकार के होते हैं - आर्य और म्लेच्छ-शक, यवन, चिलात (किरात), शबर, बर्बर, मुरुंड, उड्ड (ओडू), भडग, निण्णग, पक्कणिय, कुलक्ख, गौड, सिंहल, पारस, गोध, कोंच, अंध, दमिल (द्रविड), चिल्लल, पिलंद, हारोस, डोंब, बोक्कण, गंधहारग (?), बहलीक, उज्झल (जल?), रोमपास (?), बकुश, मलय, बंधुय, सूयलि, कोंकणग, मेय, पह्नव, मालव, मग्गर, आभासिय, अणक्ख, चीण, लासिक, खस, खासिय, नेहुर, मोंढ, डोंबिलग, लओस, केकय, अक्खाण, हूण, रोमक, रूरू, मरूय' आदि (37) / (135)