________________ अम्बुवासी : जल में रहने वाले। बिलवासी : बिल में रहने वाले। जलवासी : जल में निमग्न होकर बैठे रहने वाले। वेलवासी : समुद्र के किनारे रहने वाले। रूक्खमूलिआ : वृक्ष के नीचे रहने वाले। अम्बुभक्खी : जल भक्षण करने वाले। बाडभक्खी : हवा पीकर रहने वाले। सेवालभक्खी : शेवाल खाकर रहने वाले। इनमें से अनेक तपस्वी कंदमूल, छाल, पत्ते, पुष्प और बीज खाकर रहते थे (38) / इसका उल्लेख निरयावलिका नामक उपांग में भी है। प्रव्रजित श्रमण संखा : सांख्य। ज्ञातव्य है कि यहां सांख्यों को श्रमण परम्परा में माना गया है। जोई : योगशास्त्र के अनुयायी। कविल : कपिल के मत को मानने वाले। भिउच्च : भृगु ऋषि के अनुयायी। हंस : जो पर्वत, कुहर, पथ, आश्रम, देवकुल और आराम में रहते थे तथा मात्र शिक्षा के लिए गांव में पर्यटन करते थे। परमहंस : जो नदीतट और उनके संगम-प्रदेशों में नग्न अवस्था में रहते थे। बहुउदय : जो गांव में एक रात और नगर में पांच रात रहते हों। कुडिव्यय : जो कुटी बनाकर रहते थे तथा क्रोध, लोभ और मोहरहित होकर अहंकार का त्याग करने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। कण्हपरिव्वायग : कृष्ण परिव्राजक अथवा नारायण के भक्त (38) / ___ ब्राह्मणपरिव्राजक : कण्डु (अथवा कण्ण), करकंडु, अंबड', पारासर, कृष्ण, द्वैपायन, देवगुप्त और णारद। क्षत्रिय परिव्राजक : सेलई (शैलकीय), ससिहार (ससिहर अथवा मसिहर?), णग्गई (नग्नजित्), भग्गई, विदेह, नमिराजर्षि का जनक की परम्परा के मानने वाले, रायाराम राम के उपासक, बल-बलदेव के उपासक।