________________ जैन धर्म एवं दर्शन-240 - ‘जैन-तत्त्वमीमांसा-92 इस प्रकार, जैनदर्शन में वर्तमान जीवन का सम्बन्ध भूतकालीन एवं भावी जन्मों से माना गया है। जैनदर्शन के अनुसार चार प्रकार की योनियाँ हैं- (1) देव (स्वर्गीय-जीवन), (2) मनुष्य, (3) तिर्यच (वानस्पतिक एवं पशु-जीवन) और (4) नरक (नारकीय-जीवन) (तत्त्वार्थसूत्र 8/11) / प्राणी अपने शुभाशुभ कर्मों के अनुसार इन योनियों में जन्म लेता है। यदि वह शुभ कर्म करता है, तो देव और मनुष्य के रूप में जन्म लेता है और अशुभ कर्म करता है, तो पशु-गति या नारकीय-गति प्राप्त करता है। मनुष्य मरकर पशु भी हो सकता है और देव भी। प्राणी भावी-जीवन में क्या होगा, यह उसके वर्तमान जीवन के आचरण पर निर्भर करता है। पुद्गल-तत्त्व और परमाणु ___ पुद्गल को भी अस्तिकाय-द्रव्य एवं तत्त्व माना गया है। यह मूर्त : और अचेतन तत्त्व द्रव्य है। यद्यपि अजीव (जड़) तत्त्व के अन्तर्गत पुद्गल के साथ-साथ धर्म, अधर्म, आकाश और काल भी मान गये हैं, किन्तु इनकी विस्तृत चर्चा पंच अस्तिकाय एवं षद्रव्यों के अन्तर्गत हो चुकी है, अतः यहाँ अजीव-तत्त्व के अन्तर्गत पुद्गल की चर्चा करेंगे। सामान्यतया, पुद्गल का लक्षण शब्द, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आदि माना जाता है। इसके अतिरिक्त, जैन-आचार्यों ने हल्कापन, भारीपन, प्रकाश, अंधकार, छाया, आतप, शब्द, बन्ध-सामर्थ्य, सूक्ष्मत्व, स्थूलत्व, संस्थान, भेद आदि को भी पुद्गल का लक्षण माना है। (उत्तराध्ययन 28/127 एवं तत्त्वार्थ5/23-24)। जहाँ धर्म, अधर्म और आकाश एक द्रव्य माने गये हैं, वहाँ पुद्गल अनेक द्रव्य हैं। जैन-आचार्यों ने प्रत्येक परमाणु को एक स्वतन्त्र द्रव्य या इकाई माना है। वस्तुतः, यह पुद्गल-द्रव्य समस्त दृश्य-जगत् का मूलभूत घटक है। ज्ञातव्य है कि बौद्धदर्शन में और भगवती जैसे आगमों के प्राचीन अंशों में पुद्गल शब्द का प्रयोग जीव या चेतन-तत्त्व के लिए भी हुआ है, किन्तु इसे पौद्गलिक-शरीर की अपेक्षा से ही जानना चाहिए। यद्यपि बौद्ध-परम्परा में तो पुद्गल-प्रज्ञप्ति (पुग्गल पञति) नामक एक ग्रन्थ ही है, जो जीव के प्रकारों आदि की चर्चा करता है, फिर भी जीवों के लिए