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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-208 जैन-तत्त्वमीमांसा-60 वैभाविक गुण कृत अर्थात् पर्यायजन्य उत्पाद और व्यय होते रहते हैं। यह सब उस द्रव्य की सम्पत्ति या स्वरूप है, इसलिए द्रव्य को उत्पाद-व्यय और धौव्यात्मकता कहा गया है। द्रव्य के साथ-साथ उसके गुणों को भी उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यात्मक कहा जाता है। द्रव्य के साथ-साथ उसके गुणों में भी उत्पाद-व्यय होता रहता है। जीव का गुण चेतना है, उससे पृथक होने पर जीव जीव नहीं रहेगा, फिर भी जीव की चेतन अवस्थाएँ या अनुभूतियाँ स्थिर नहीं रहती हैं, वे प्रतिक्षण बदलती रहती हैं, अतः गुणों में भी उत्पाद-व्यय होता रहता है। पुनः, वस्तु का स्व-लक्षण कभी बदलता नहीं है, अतः गुण में ध्रौव्यत्व-पक्ष भी है, अतः गुण भी द्रव्य के समान उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य-लक्षण युक्त है। गुणों के प्रकार ___ जैनदर्शन में सत्ता को अनन्त-धर्मात्मक (अनन्त गुणात्मक) माना गया है। वस्तु के गुणधर्म दो प्रकार के हैं- भावात्मक-गुणधर्म और अभावात्मक गुणधर्म / भावात्मक (विधायक) गुणधर्मों की अपेक्षा भी अभावात्मक गुणधर्मों का अभावरूप होना भी आवश्यक है। एक मनुष्य को वही होने के लिए उसका चराचर विश्व की अनन्त वस्तुओं एवं व्यक्तियों से भिन्न होना अर्थात् उसमें उनका अभाव होना आवश्यक है। स्थूल उदाहरण के लिए 'सागरमल' को सागरमल होने के लिए स्थूल-जगत् के 6 अरब व्यक्तियों से, असंख्यात् कीट-पतंगों से लेकर पशुओं से तथा विश्व की अनन्त जड़ वस्तुओं से भिन्न होना आवश्यक है, अर्थात् उनके विशिष्ट गुणधर्मो का उसमें अभाव होना भी आवश्यक है। कुछ सामान्य गुणों की अपेक्षा भी विशिष्ट गुणधर्म तो अनेक होते ही हैं। इसी दृष्टि से जैनधर्म में वस्तु को अनन्त-धर्मात्मक कहा गया है, दूसरे, व्यक्त गुणों की अपेक्षा से भी अव्यक्त या गौण गुणधर्म कहीं अधिक होते हैं। एक कच्चे आम्रफल में सफेद और हरे रंग, खट्टे स्वादरूप व्यक्त गुणों की अपेक्षा भी अव्यक्त-गुणों की दृष्टि से पाँचों वर्ण, दोनों गंध, पाँचों स्वाद, आठों स्पर्श आदि भी व्यक्त रूप से रहे हुए हैं। भावात्मक और अभावात्मक तथा व्यक्त और अव्यक्त-गुणधर्मों की चर्चा के अतिरिक्त भी अनेक अज्ञात गुणधर्मों की संख्या का निर्धारण तो अति कठिन है, फिर भी सामान्य और विशेष
SR No.004420
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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