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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-171 जैन-तत्त्वमीमांसा -23 महावीर के कथन का मूल उत्स एक-दूसरे से उतना भिन्न नहीं है, जितना कि हम उसे मान लेते हैं। भगवान् बुद्ध का सत् के स्वरूप के सम्बन्ध में यथार्थ मन्तव्य क्या था, इसकी विस्तृत चर्चा हमने 'जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन' भाग-1 (पृ. 192-194) में की है, इच्छुक पाठक उसे वहाँ देख सकते हैं। सत् के स्वरूप के सम्बन्ध में प्रस्तुत विवेचना का मूल उद्देश्य मात्र इतना है कि सत् के सम्बन्ध में एकान्त-अभेदवाद और एकान्त-भेदवाद उन्हें मान्य नहीं रहे हैं। जैन-दार्शनिकों के अनुसार, सत्ता सामान्य-विशेषात्मक या भेदाभेदात्मक है। वह एक भी है और अनेक भी। वे भेद में अभेद और अभेद में भेद को स्वीकार करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे अनेकता में एकता का और एकता में अनेकता का दर्शन करते हैं। मानवता की अपेक्षा मनुष्यजाति एक है, किन्तु देश-भेद, वर्णभेद, वर्ग-भेद या व्यक्ति-भेद की अपेक्षा वह अनेक है। जैन दार्शनिकों के अनुसार, एकता में अनेकता और अनेकता में एकता अनुस्यूत है। . सत् के सम्बन्ध में एकान्त-परिवर्तनशीलता का या भेदवादी दृष्टिकोण और एकान्त अपरिवर्तनशीलता का या अभेदवादी (अद्वैतवादी) दृष्टिकोण-इन दोनों में से किसी एक को अपनाने पर न तो व्यवहार-जगत की व्याख्या सम्भव है, न धर्म और नैतिकता का कोई स्थान होगा। यही कारण था कि आचारमार्गीय-परम्परा के प्रतिनिधि भगवान् महावीर एवं भगवान् बुद्ध ने उनका परित्याग आवश्यक समझा। महावीर की विशेषता यह रही कि उन्होंने न केवल एकान्त-शाश्वतवाद का और न एकान्त-उच्छेदवाद का परित्याग किया, अपितु अपनी अनेकान्तवादी और समन्वयवादी परम्परागत दृष्टि से यह माना है कि सत् या सत्ता परिणाम- नित्य है। वह परिवर्तनशील होकर भी नित्य है। भगवान् महावीर ने 'उपन्नेइ वा, विगमेइ वा, धुवेइ वा'- इस त्रिपदी का उपदेश दिया था। समस्त जैन-दार्शनिकवाड्.मय का विकास इसी त्रिपदी के आधार पर हुआ है। परमार्थ या सत् के स्वरूप के सम्बन्ध में महावीर का उपर्युक्त कथन ही जैनदर्शन का केन्द्रीय तत्त्व है। . इस सिद्धान्त के अनुसार; उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य- ये तीनों ही सत्
SR No.004420
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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