________________ जैन धर्म एवं दर्शन-722 जैन- आचार मीमांसा-254 समाधि-मरण ग्रहण करने की विधि जैनागमों में समाधि-मरण ग्रहण करने की विधि भी बताई गई है। सर्वप्रथम मलमूत्रादि अंशुचि-विसर्जन के स्थान का अवलोकन कर नरम तुणों की शय्या तैयार कर ली जाती है। तत्पश्चात् सिद्ध, अरहन्त और धर्माचार्यों को विनयपूर्वक नमस्कार कर पूर्वगृहीत प्रतिज्ञाओं में लगे हुए दोषों की आलोचना और उनका प्रायश्चित्त ग्रहण किया जाता है। इसके बाद, समस्त प्राणियों से क्षमा याचना की जाती है और अन्त में अठारह पापस्थानों, अन्नादि चतुर्विध आहारों का त्याग करके शरीर के ममत्व एवं पोषण-क्रिया का विसर्जन किया जाता है। साधक प्रतिज्ञा करता है कि मैं पूर्णतः हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य से विरत होता हूँ, अन्न आदि चारों प्रकार के आहार का यावज्जीवन के लिए त्याग करता हूँ / मेरा यह शरीर, जो मुझे अत्यन्त प्रिय था, मैंने इसकी बहुत रक्षा की थी, कृपण के धन के समान इसे संभालता रहा था, इस पर मेरा पूर्ण विश्वास था ( कि यह मुझे कभी नहीं छोड़ेगा), इसके समान मुझे अन्य कोई प्रिय नहीं था, इसलिए मैंने इसे शीत, गर्मी, क्षुधा, तृषा आदि अनेक कष्टों से एवं विविध रोगों से बचाया और सावधानीपूर्वक इसकी रक्षा करता रहा, अब मैं इस देह का विसर्जन करता हूँ और इसके पोषण एवं रक्षण के प्रयासों का परित्याग करता हूँ।192 नैतिकता का आधार सामाजिक चेतना भारतीय-दर्शन में सामाजिक-चेतना का विकास भारतीय दार्शनिक-चिन्तन में उपस्थित सामाजिक-सन्दर्भो को समझने के लिए सर्वप्रथम हमें यह जान लेना चाहिए कि केवल कुछ दार्शनिक-प्रस्थान ही सम्पूर्ण भारतीय-प्रज्ञा एवं भारतीय-चिन्तन का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, इन दार्शनिकप्रस्थानों से हटकर भी भारत में दार्शनिक-चिन्तन हुआ है और उसमें अनेकानेक सामाजिक-संदर्भ उपस्थित हैं। दूसरे यह कि भारतीय-दर्शन मात्र बौद्धिक एवं सैद्धान्तिक ही नहीं है, वह अनुभूत्यात्मक एवं व्यावहारिक भी है; कोई भी भारतीय-दर्शन ऐसा नहीं है, जो मात्र तत्त्वमीमांसीय (Metaphysical) एवं ज्ञान-मीमांसीय (Epistomological) चिन्तन से ही संतोष धारण कर लेता हो। उसमें ज्ञान ज्ञान के लिए नहीं, अपितु जीवन के सफल संचालन के लिए है। उसका मूल दुःख ही समस्या में है। दुःख और दुःख-मुक्ति-यही भारतीय-दर्शन का 'अर्थ' और 'इति' है / यद्यपि तत्त्व-मीमांसा और ज्ञान-मीमांसा प्रत्येक भारतीय-दार्शनिक-प्रस्थान के महत्वपूर्ण