________________ जैन धर्म एवं दर्शन-652 जैन - आचार मीमांसा-184 ही सिद्ध किया जा सकता हैं / मानव-शरीर की संरचना उसे निरामिष प्राणी ही सिद्ध करती है। मांसाहार मानव के लिए कितना हानिकारक है, यह बात अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्रमाणित हो चुकी है। इस लघु निबन्ध में उस सबकी चर्चा कर पाना तो सम्भव नहीं है, किन्तु यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि मांसाहार शारीरिक स्वास्थ के लिए हानिकारक है और मनुष्य स्वभावतः एक शाकाहारी प्राणी है। ____ मांसाहार के समर्थन में सबसे बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि बढ़ती हुई मानव-जाति की आबादी को देखते हुए भविष्य में मांसाहार के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प शेष नहीं रहेगा, जिससे मानव जाति की क्षुधा को शान्त किया जा सके। किन्तु उसके विपरित कृषि के क्षेत्र में भी ऐसे अनेक वैज्ञानिक प्रयोग हुए हैं और हो रहे हैं जो स्पष्ट रूप से यह प्रतिपादित करते हैं कि मनुष्य को अभी शताब्दियों तक निरामिष भोजी बनाकर जिलाया जा सकता है। अनेक आर्थिक सर्वेक्षणों में यह भी प्रमाणित हो चुका है कि शाकाहार मांसाहार की अपेक्षा अधिक सुलभ और सस्ता है। अतः मनुष्य की स्वाद -लोलुप्ता के अतिरिक्त और कोई तर्क ऐसा नहीं है, जो मांसाहार का समर्थक हो सके। शक्तिदायक आहार के रूप में मांसाहार का सर्मथन एक खोखला दावा है / यह सिद्ध हो चुका हैं कि मांसाहारियों की अपेक्षा शाकाहारी अधिक शक्ति सम्पन्न होते हैं, और उनमें अधिक काम करने की क्षमता होती है। शेर आदि मांसाहारी प्राणी शाकाहारी प्राणियों पर जो विजय प्राप्त कर लेते हैं, उसका कारण उनकी शक्तिनही बल्कि उनके नख, दांत आदि क्रूर शारीरिक अंग ही हैं। ___ जैन समाज के लिए आज यह विचारणीय प्रश्न है कि वह समाज में बढ़ती जा रही सामिष भोजन के लिए जो ललक हैं, उसे कैसे रोकें ? आज आवश्यकता इस बात की है कि हमें मांसाहार और शाकाहार के गुण-दोषों की समीक्षा करते हुए तुलनात्मक विवरण से युक्त ऐसा साहित्य प्रकाशित करना होगा, जो आज के युवक को तर्क-संगत रूप से यह अहसास करवा सके कि मांसाहार की अपेक्षा शाकाहार एक उपयुक्त भोजन है। दूसरे समाज में जो मांसाहार के प्रति ललक बढ़ती जा रही है, उसका कारण समाज नियंत्रण का अभाव तथा मांसाहारी समाज से बढ़ता हुआ घनिष्ठ परिचय है, जिस पर किसी सीमा तक अंकुश लगाना आवश्यक है। 3. मद्यपान :- तीसरा दुर्व्यसन मद्यपान माना गया है और गृहस्थोपासक को इसके त्याग का स्पष्ट निर्देश दिया गया है। बुद्ध ने तो इस दुष्प्रवृत्ति को रोकने के लिए अपने पंचशीलों में अपरिग्रह के स्थान पर मद्यपान निषेध को स्थान दिया था। यह एक ऐसी