________________ जैन धर्म एवं दर्शन-574 जैन- आचार मीमांसा-106 अलग-अलग होंगी और यदि मूल्यदृष्टियाँ भिन्न-भिन्न होंगी, तो नैतिक-प्रतिमान भी विविध होंगे। यह एक आनुभाविक-तथ्य है कि विविध दृष्टिकोणों के आधार पर एक ही घटना का नैतिक मूल्यांकन अलग-अलग होता है। उदाहरण के रूप में, परिवार नियोजन की धारणा, जनसंख्या के बाहुल्य वाले देशों की दृष्टि से चाहे उचित हो, किन्तु अल्प जनसंख्या वाले देशों एवं जातियों की दृष्टि से अनुचित होगी। राष्ट्रवाद अपनी प्रजाति की अस्मिता की दृष्टि से चाहे अच्छा हो; किन्तु सम्पूर्ण मानवता की दृष्टि से . अनुचित है। हम भारतीय ही एक ओर जातिवाद एवं सम्प्रदायवाद को कोसते हैं, तो दूसरी ओर भारतीयता के नाम पर अपने को गौरवान्वित अनुभव करते हैं। क्या हम यहाँ दोहरे मापदण्ड का उपयोग नहीं कर रहे हैं? स्वतन्त्रता की बात को ही लें। क्या स्वतन्त्रता और सामाजिक अनुशासन सहगामी होकर चल सकते हैं? आपातकाल को ही लीजिए, वैयक्तिक स्वतन्त्रता के हनन की दृष्टि से, या नौकरशाही के हावी होने की दृष्टि से . हम उसकी आलोचना कर सकते हैं, किन्तु अनुशासन बनाए रखने और अराजकता को हम उसकी आलोचना कर सकते हैं, किन्तु अनुशासन बनाए रखने और अराजकता को समाप्त करने की दृष्टि से उसे उचित ठहराया जा सकता है। वस्तुतः, उचितता और अनुचितता का मूल्यांकन किसी एक दृष्टिकोण के आधार पर न होकर विविध दृष्ट्रिकोणों के आधार पर होता है। जो एक दृष्टिकोण या अपेक्षा से नैतिक हो सकता है, वही दूसरे दृष्टिकोण या अपेक्षा से अनुचित हो सकता है; जो एक परिस्थिति के लिए उचित हो सकता है, वही दूसरी परिस्थिति में अनुचित हो सकता हैं जो एक व्यक्ति के लिए उचित है, वही दूसरे के लिए अनुचित हो सकता है। एक स्थूल शरीर वाले व्यक्ति के लिए स्निग्ध पदार्थों का सेवन अनुचित है, किन्तु कृशकाय व्यक्ति के लिए उचित है; अतः हम कह सकते हैं कि नैतिक-मूल्यांकन के विविध दृष्टिकोण हैं और इन विविध दृष्टिकोणों के आधार पर विविध नैतिक-प्रतिमान बनते हैं, जो एक ही घटना का अलग-अलग नैतिक-मूल्यांकन करते हैं। नैतिक-मूल्यांकन परिस्थिति-सापेक्ष एवं दृष्टि सापेक्ष मूल्यांकन हैं; अतः उनकी सार्वभौम सत्यता का दावा करना भी व्यर्थ है। किसी