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________________ वह गाथा निम्नानुसार है - 'आराहण णिज्जुत्ति मरणविभत्ती या संगहत्थुदिओ। पच्चक्खाणावसय धम्मकहाओय एरिसओ।' (मूलाचार, पंचाचारधिकार, 279) अर्थात आराधना, नियुक्ति, मरणविभक्ति, संग्रहणीसूत्र, स्तुति (वीरस्तुति), प्रत्याख्यान (महाप्रत्याख्यान, आतुरप्रत्याख्यान), आवश्यकसूत्र, धर्मकथा तथा ऐसे अन्य ग्रंथों का अध्ययन अस्वाध्याय काल में किया जा सकता है। वस्तुतः मूलाचार की इस गाथा के अनुसार आराधना एवं नियुक्ति ये अलग-अलग स्वतंत्र ग्रंथ हैं। इसमें आराधना से तात्पर्य आराधना नामक प्रकीर्णक अथवा भगवती आराधना से तथा नियुक्ति से तात्पर्य आवश्यक आदि सभी नियुक्तियों से है। . अतः आराधनानियुक्ति नामक नियुक्ति की कल्पना अयथार्थ है। इस नियुक्ति के अस्तित्व की कोई सूचना अन्यत्र भी नहीं मिलती है और न यह ग्रंथ ही उपलब्ध होता है। इन दस नियुक्तियों के अतिरिक्त आर्य गोविंद की गोविंदनिर्यक्ति का भी उल्लेख मिलता है, किंतु यह भी नियुक्ति वर्तमान में अनुपलब्ध हैं। इनका उल्लेख नन्दीसूत्र, व्यवहारभाष्य', आवश्यकचूर्णि', निशीथचूर्णि" में मिलता है। इस नियुक्ति की विषय-वस्तु मुख्य रूप से एकेन्द्रिय अर्थात पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति आदि में जीवन की सिद्धि करना था। इसे गोविंद नामक आचार्य ने बनाया था और उनके नाम के आधार पर ही इसका नामकरण हुआहै। कथानकों के अनुसार यह बौद्ध परम्परा से आकर जैन परम्परा में दीक्षित हुए थे। मेरी दृष्टि में यह नियुक्ति आचारांग के प्रथम अध्ययन और दशवैकालिक के चतुर्थ षडजीवनिकाय नामक अध्ययन से सम्बंधित रही होगी और इसका उद्देश्य बौद्धों के विरूद्ध पृथ्वी, पानी आदि में जीवन की सिद्धि करना रहा होगा। यही कारण है कि इसकी गणना दर्शन प्रभावक ग्रंथ में की गई है। संज्ञी-श्रुत के संदर्भ में इसका उल्लेख भी यही बताता है।" इस प्रकार संसक्तिनियुक्ति 13 नामक एक और नियुक्ति का उल्लेख मिलता है। इसमें 84 आगमों के सम्बंध में उल्लेख है। इसमें मात्र 94 गाथाएं हैं। 84 आगमों का उल्लेख होने से विद्वानों ने इसे पर्याप्त परवर्ती एवं विसंगत रचना माना है। अतः इसे प्राचीन नियुक्ति साहित्य में परिगणित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार वर्तमान नियुक्तियां दस नियुक्तियों में समाहित हो जाती हैं। इनके अतिरिक्त अन्य किसी नियुक्ति नामक ग्रंथ की जानकारी हमें नहीं है। [90]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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