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________________ टीकाएँ जैसे अन्ययोगव्यवछेदिका की स्यादवाद-मन्जरी नामक टीका, गुणरत्न की षडदर्शन समुच्चय की टीका आदि भी लिखी गई थी, किन्तु विस्तार भय से उन सब में जना उचित नहीं हैं। 17वी शताब्दी में श्वेताम्बर परम्परा में उपाध्याय यशोविजय नामक एक प्रसिद्ध जैन लेखक हुए, जिनके अध्यात्मसार, ज्ञानसार आदि दर्शन के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। अध्यात्म के क्षेत्र में अध्यात्ममतसमीक्षा, अध्यात्मसार, ज्ञानसार आदि तथा दर्शन के क्षेत्र में जैन तर्कभाषा, नयोपदेश, नयसहस्य, न्यायालोक, स्यादवाद कल्पलता आदि उनके अनेक ग्रन्थ प्रसिद्ध है। उनके पश्चात् 18वी, 19वी और 20वी शताब्दी में जैन दर्शन पर संस्कृत भाषा में कोई महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा गया हो यह हमारी जनकारी में नही है, यद्यपि तत्त्वार्थसूत्र की शैली पर आचार्य तुलसी के जैन-सिद्धान्त-दीपिका और मनोऽनुशासनम् नामक ग्रन्थों की संस्कृत भाषा में रचना की है, फिर भी इस काल खण्ड में संस्कृत भाषा में दार्शनिक ग्रन्थों के लेखन की प्रवृत्ति नहीवत् ही रही है। संस्कृत के जैन चरित काव्य एवं महाकाव्य महापुरूषो की जीवन गाथओं के आधार पर जैन धर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्पराओं में अनेक संस्कृत ग्रन्थों की रचना हुई है। महापुराण (आदि पुराण और उत्तर पुराण ) तथा हेमचन्द्र का त्रिशष्टि शलाका महापुराण चरित्र तो प्रसिद्ध है ही। इसके अतिरिक्त भी महापुरूषों पर अनेक पुराण और चरितकाव्य भी रचे गये। जैसे - पद्यानन्द-महाकाव्य, अजितनाथपुराण, चन्द्रप्रभचरित, श्रेयांसनाथचरित, वासुपूज्यचरित, विमलनाथचरित, शान्तिनाथपुराण, शान्तिनाथचरित, मल्लिनाथचरित, मुनिसुव्रतचरित, नेमिनाथमहाकाव्य, नेमिनाथचरित, पार्श्वनाथचरित, महावीरचरित, वर्धमानचरित, अममस्वामिचरित, प्रत्येकबुद्धचरित, केवलिचरित, श्रेणिकचरित्र, महावीरकालीन श्रेणिक के परिवार के सदस्यों एवं अन्य पात्रों के चरित, प्रभावक आचार्यों के चरित, खरतरगच्छीय आचार्यो के जैवनचरित्र, कुमारपालचरित्र, वस्तुपाल-तेजपालचरित, विमलमंत्रिचरित, जगडूशाहचरित, सुकृतसागर, पृथ्वीधरप्रबंध, चावडप्रबंध, कर्मवंशोत्कीर्तनकाव्य, क्षेमसौभाग्यकाव्य आदि। इनके अतिरिक्त प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव, बारह चक्रवर्तियो एवं अन्य शलाका पुरूषो पर भी संस्कृत में अनेक रचनाएँ जैनाचार्यो ने लिखी है। इसके अतिरिक्त निम्न काव्य और महाकाव्य भी जैनाचार्यो द्वारा रचित है / जैसे- प्रद्यम्नचरितकाव्य, नेमिनिर्वाणमहाकाव्य, चन्द्रप्रभचरितमहाकाव्य, वर्धमानचरित, धर्मशर्माभ्युदय, सनत्कुमारचरित, [ 128]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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