________________ के नामों के जो निर्देश उपलब्ध है, उनमें उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, कल्प, व्यवहार, कल्पिकाकल्पिक, महाकल्पिक, पुण्डरिक, महापुंडरिक, निशीथ आदि है। ज्ञातव्य है कि धवला में अंग बाह्यो के जो 14 नाम गिनाये हैं, उनमें कल्प और व्यवहार भी है। धवला में कप्पाकप्पीय महाकप्पीय, पुण्डरिक और महापुण्डरिक - ये चार नाम तत्वार्थ भाष्य की अपेक्षा अधिक है और उसमें भाष्य में उल्लेखित दशा और ऋषिभाषित को छोड दिया गया है। साथ ही इन नामों में से पुण्डरिक और महापुण्डरिक को छोडकर शेष सभी ग्रंथ श्वेताम्बर परम्परा में भी मान्य है। कल्पाकल्पिक का उल्लेख नन्दीसूत्र में है, किन्तु अब यह ग्रंथ उपलब्ध नहीं है। शेष सभी ग्रंथ श्वेताम्बर परम्परा में आज भी उपलब्ध माने जाते हैं। श्वेताम्बर परम्परा में सूत्रकृतांग में पुण्डरिक नामक एक अध्ययन भी है। . जहाँ तक आगम साहित्य के वर्गीकरण का प्रश्न है, श्वेताम्बर परम्परा में दो प्रकार के वर्गीकरण उपलब्ध होते है- 1. नन्दीसूत्र का प्राचीन वर्गीकरण और 2. जिनप्रभ की 'विधिमार्ग प्रपा' का आधुनिक वर्गीकरण। नन्दीसूत्र का प्राचीन वर्गीकरण लगभग ईसा की पाँचवी शताब्दि का है, जबकि आधुनिक वर्गीकरण प्राय: ईसा की 13वी-14वी शती से प्रचलन में है। नन्दीसूत्र के प्राचीन वर्गीकरण में आगमों को सर्वप्रथम अंगप्रविष्ट और अंगबाह्म, ऐसे पूर्व में प्रचलित दो विभागों में ही बाँटा गया है। किन्तु इसकी विशेषता यह है कि वह अंगबाह्म ग्रन्थों के प्रथमत: दो विभाग करता है- 1 आवश्यक और 2 आवश्यक व्यतिरिक्त। पुन: आवश्यक के सामायिक आदि छह विभाग किये गये है। आवश्यक व्यतिरिक्त को पुन: कालिक और उत्कालिक ऐसे दो विभागों में बाँटा गया है। इसमें कालिक के अंतर्गत 31 ग्रंथ और उत्कालिक के अंतर्गत 29 ग्रंथ हैं। इस प्रकार नन्दी सूत्र में 12 अंगप्रविष्ट 6 आवश्यक, 31 कालिक और 29 उत्कालिक, कुल 78 ग्रंथ उल्लेखित हैं, इनमें से कुछ वर्तमान में अनुपलब्ध भी है। [9]