________________ आदि टीका ग्रन्थ संस्कृत-भाषा में लिखे। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक आगमिक प्रकरणों एवं कर्मग्रन्थों पर भी संस्कृत में टीकाएँ लिखी। यथा- कर्मप्रकृतिटीका, पंचसग्रहटीका, क्षेत्रसमासवृत्ति, षंडशीतिवृत्ति, सप्ततिकाटीका आदि। इसके पश्चात आगमों पर संस्कृत में टीकाएँ लिखने वालों में तिलकाचार्य का नाम आता है,उन्होने जीतकल्पवृत्ति, आवश्यकनियुक्तिलघुवृत्ति, दशवैकालिकटीका, श्रावकप्रतिक्रमणलघुवृत्ति, पाक्षिकसूत्रअवचूरि आदि लिखी। इनका काल 13वी शताब्दी का उत्तरार्ध माना जाता है। इसके चार शताब्दि पश्चात् आगमिक व्याख्याकारो में उपाध्याय यशोविजयजे का क्रम आता है, इन्होने अनेक आगमो पर टीकाएँ लिखी थी। किन्तु इनके काल के बाद में आगमों पर संस्कृत में टीका या वृत्ति लिखने के स्थान पर प्राय: लोकभाषा (मरू गुर्जर) में टब्बे लिखे जाने लगे थे, अत: संस्कृत लेखन का प्रचलन कम हो गया, फिर भी वर्तमान युग में पूज्य घासीलालजी म.सा. ने स्थानकवासी परम्परा में मान्य 32 आगमों पर संस्कृत में टीकाएँ लिखी है। तेरापंथ के आचार्य महाप्रज्ञजी ने भी आचारांग भाष्य आदि कुछ भाष्य संस्कृत में लिखे है। आचार्य हस्तीमलजी ने दशवैकालिकसूत्र एवं नन्दीसूत्र पर संस्कृत में टीकाएँ लिखी है। इसी प्रकार श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में कुलचन्द्रसूरी, कल्याणसूरि ने भी कल्पसूत्र एवं अन्य आगमों पर टीकाएँ लिखी है, अत: आगमों पर संस्कृत में व्याख्या साहित्य लिखने की यह परम्परा वर्तमान युग तक भी जीवित रही है। जहाँ तक दिगम्बर परम्परा के आगम तुल्य ग्रन्थों का प्रश्न है, वे भी मूलत: प्राकृत भाषा में रचित है- षटखण्डागम, कसायपाहुड, मूलाचार, भगवती आराधना, तिलोयपण्णत्ति, समयसार, नियमसार, पंचास्तिकायसार, अष्टपाहुड आदि सभी मूलत: प्राकृत में निबद्ध है, किन्तु लगभग ९वी शताब्दी से इन पर जो टीकाएँ लिखी गई, वे या तो संस्कृत प्राकृत मिश्रित भाषा या फिर विशुद्ध संस्कृत में ही मिलती है। इनमें धवला, जय धवला, महाधवल आदि प्रसिद्ध है। किन्तु मूलाचार, भगवती आराधना, समयसार, नियमसार, पंचास्तिकायसार आदि की टीकाएँ तो संस्कृत में ही है। ये सभी ९वी शती से लेकर १५वी शती के मध्य की है। संस्कृत भाषा का जैन दार्शनिक साहित्य यद्यपि जैन तत्वज्ञान से संबधित विषयों का प्रतिपादन आगमों में मिलता है, किन्तु सभी आगम प्राकृत में ही निषद्ध है। तत्वज्ञान से संबधित प्रथम सूत्र ग्रन्थ की रचना उमास्वाति ने संस्कृत भाषा में ही की थी। उमास्वाति के काल तक विविध दार्शनिक निकायों के सूत्र ग्रन्थ अस्तित्व में आ चुके थे, जैसे वैशेषिक सूत्र, [125]