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________________ आगम निबंधमाला प्रकाशकीय-सपादकीय मानव जीवन अनेक उतार-चढावों का पिटारा है। जो इसमें संभल संभलकर चले वही श्रेष्ठ लक्ष्य को पा सकता है अन्यथा कभी भी भटक सकता है। वैसी स्थिति में आगमज्ञान प्रकाश ही जीवन का सही मार्गदर्शक बन सकता है। इस ज्ञान श्रृंखला में पाठकों को 32 आगम सारांश एवं 32 आगम प्रश्नोत्तर के बाद अब नया अवसर आगमिक निबंधों का संग्रह-निबंध निचय अनेक भागों के रूप में हस्तगत कराया जायेगा। जिसमें आगम सारांश और आगम प्रश्नोत्तर की पुस्तकों में से ही विषयों को उदृकित कर निबंध की शैली में प्रस्तुत किया जायेगा। ये निबंध पाठकों, लेखकों, मासिकपत्र प्रकाशकों एवं जीवन सुधारक जिज्ञासुओं को उपयोगी, अति उपयोगी हो सकी / इसी शुभ भावना से आगम ज्ञान सागर को इस तीसरी निबंध श्रेणी में तैयार किया गया है। (1) स्वाध्याय संघो के सुझाव से----- आगम सारांश (2) आचार्यश्री देवेन्द्रमुनिजी की प्रेरणा से---- आगम प्रश्नोत्तर (3) नूतनपत्रिका संपादक से प्रेरणा पाकर--- आगम निबंध आशा है, आगम जिज्ञासु इस तीसरे आगम उपक्रम से जरूर लाभान्वित होंगे ।इस निबंध माला के प्रथम और द्वितीय भाग प्रकाशित हो चुके है / अब यह तीसरा भाग पाठकों के करकमलों में पहुँचाया जा रहा है / इसमें आचारांग, सूयगडांग, ठाणाग, समवायांग और भगवती शतक-१२ तक में से कुछ विषयों का संकलन कियागया है। - इसमें पाठकों को सूत्रस्थल जानना हो तो अनुक्रमणिका में हमने सूत्र स्थल दे रखे हैं, वहाँ देखे। आगम मनीषी तिलोकचंद जैन शा .
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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