________________ आगम निबंधमाला स्वमति एकांतिक प्ररूपणा नहीं करने का विवेक रखना चाहिये और आगम आशय को तथा संयम नियम के मुख्य हेतु को लक्ष्य में रखना चाहिये / कई साधु साध्वी आगम निरपेक्ष व्यक्तिगत झूठे आग्रह में आगम के अनेकांतिक सपरिस्थितिक विवेक को नहीं समझकर, निर्दोष आहार को छोडकर अनेक प्रकार के दोष-आधाकर्म, अभिहड आदि से युक्त आहार ग्रहण करना स्वीकार कर लेते हैं / वह आगम के अनेकांतिक ज्ञान विवेक के अभाव के कारण तथा स्वमान के कारण होता है, ऐसे अविवेक से बचना चाहिये तथा दीनता या आसक्ति वृत्ति से एवं अविवेक से ऐसे स्थानों में जाना भी नहीं चाहिये / यदि अन्यत्र गोचरी सुलभता से हो सकती हो तो ऐसे स्थानों में नहीं जाना ही उपयुक्त होता है। निबंध-२७ गोचरी के कुल समाज के व्यवहार में जिन कुलों के साथ अस्पृश्यता का व्यवहार हो अथवा जो मांसाहार या अनार्यता के कारण घृणित निंदित कुल हो, उनमें जैन श्रमणों को समाज व्यवहार की प्रमुखता से गोचरी जाना आगम में निषिद्ध है अर्थात् श्रमणों के लिये मुख्य गोचरी के समाज है वैश्यवर्ग, ब्राह्मण वर्ग, क्षत्रिय वर्ग:। उनका जिन कुलों के साथ परहेज का व्यवहार हो, वहाँ जाने से इन लोगो को अपने घर में साधु का आना उपयुक्त नहीं लगता / इस हेतु से शास्त्र में बिना किसी जाति का नाम खोले घृणित जुगुप्सित और निंदित कुलो में साधु को भिक्षार्थ जाने का निषेध स्पष्ट रूप से किया गया है और अनिंदित अजुगुप्सित कुलों के नाम कुछ उदाहरणार्थ दिये हैं और कहा है कि इस प्रकार के जो भी अन्य कुल अजुगुप्सित हो वहाँ भिक्षु गोचरी जा सकता है / ऐसे प्रसंग में ऊँच नीच शब्द से कथन नहीं किया है किंतु जुगुप्सित अजुगुप्सित शब्द से विधान किया है, जो सामाजिकता से संबंध रखता है। जहाँ गौतम स्वामी आदि के गोचरी जाने संबंधी वर्णन आता है वहाँ ऊँच नीच मध्यम कल शब्द का प्रयोग है वहाँ सर्वत्र उन तीनों