________________ आगम निबंधमाला देवों की भाषा अर्धमागधी है / जिस तरह संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषा कोई देश विशेष से संबंधित नहीं है किसी भी क्षेत्र से अप्रतिबद्ध स्वतंत्र भाषा है वैसे ही अर्धमागधी देवों की भाषा मनुष्य लोक के किसी क्षेत्र से प्रतिबद्ध न होकर स्वतंत्र अनादि शाश्वत भाषा है। व्युत्पत्ति अर्थ करते हुए इसे मागध देश की मुख्यता वाली मिश्रित भाषा भी माना जाता है / तथापि सभी तीर्थंकरों एवं देवों की अनादि भाषा होने की दृष्टि से किसी देश विशेष से संबंधित नहीं करना ही उचित होता है / केवली का मन एवं वचन प्रकृष्ट अर्थात् स्पष्ट होता है जिसे वैमानिक सम्यग्दृष्टि देव पर्याप्त एवं उपयोगवंत होवे तो अवधिज्ञान से जान सकते हैं / मिथ्यादृष्टि आदि नहीं जान सकते हैं। अनुत्तरविमान के देवों को भी अवधिज्ञान विशिष्ट होता है। जिससे उन्हें मनोद्रव्यवर्गणा लब्ध होती है / इसलिये वे देव वहाँ पर रहे हुए ही मनुष्य लोक में विचरने वाले केवलज्ञानी से वार्तालाप प्रश्नोत्तर कर सकते हैं, समझ सकते हैं / अनतर विमान के देवों के मोहकर्म अत्यंत उपशांत होता है / पूर्व भव की सम्यग् आराधना का यह प्रभाव है। निबंध-११५ आचार्य उपाध्याय के कर्तव्य पालन का फल यहाँ उद्देशक-६ के अंत में बताया गया है कि जो आचार्यउपाध्याय रुचिपूर्वक, उत्साहपूर्वक, खेद बिना अपनी जिम्मेदारी का यथार्थ पालन करते हैं; अपना संयम उन्नत करते हुए सभी निश्रागत श्रमण-श्रमणियों का संयम भी उन्नत होने का ध्यान रखते हैं; इस प्रकार के कर्तव्य पालन एवं अपना संयम पालन करते हुए वे आचार्यउपाध्याय सर्व कर्म क्षय करे तो उसी भव में मुक्त होवे, इतना लाभ प्राप्त करते हैं; कर्म अवशेष रहे तो दूसरे या तीसरे मनुष्य भव से अवश्य मुक्त हो जाते हैं / बीच के दो भव देव के गिनने से उत्कृष्ट पाँच भव करके अवश्य मुक्त होते हैं। यदि आचार्य आदि कोई भी L214