________________ आगम निबंधमाला गणधर कृत नहीं है / मंगल रूप में लेखन कर्ताओं के लिखे हए विभिन्न रूप से पाठ मिलते हैं / ऐसे ही प्रवाह से कल्पसत्र के प्रारंभ में नमस्कार मंत्र की स्थिति है जो कल्पसूत्र की पुरानी कोई प्रत में मिलता और कोई प्रत में नहीं मिलता है / अत: नमस्कार मंत्र के पाँच पद अर्थात् अधूरा सूत्र किसी भी शास्त्र के प्रारंभ में लिखा होना लेखनकर्ताओं की ही देन है / . वास्तव में गुणों से युक्त गुणी आत्माएँ ही नमस्करणीय होती है / स्वतंत्र गुण आदरणीय आचरणीय धारणीय होते हैं / ऐसा नहीं कि- "मैं क्षमा को वंदन करता हूँ , मैं विनय को नमस्कार करता हूँ" ऐसे नमस्कार अनुपयुक्त होते हैं / इसलिये लिपि या श्रुत, मोक्ष साधकों के लिये नमस्करणीय नहीं हो सकते / श्रुत देवता शब्द से गणधारक गणधर प्रभ होने का अर्थ किया गया है। गणधर स्वयं आगम रचयिता . है तो वे स्वयं को वंदन क्यों करेंगे? इस प्रकार श्रुतदेवता के नमस्कार का पद भी गुणी को नमस्कार होते हुए भी स्वयं को नमस्कार होने से यहाँ अनुपयुक्त है। निबंध-९९ द्वादशांगी शास्वत-अशास्वत विचारणा तात्त्विक सैद्धांतिक वर्णन की दृष्टि से द्वादशांगी शाश्वत है। अपने शासन के तीर्थंकर आदि के नाम, स्तुति, गुणकीर्तन आदि यथास्थान गणधर भगवंत शासन के अनुरूप संपादित करते हैं / प्रश्नोत्तर शैली में की गई आगम या अध्ययन की रचना में गणधर यथोचित नाम शासन के अनुरूप संपादित कर सकते हैं ऐसा अधिकार प्रत्येक शासन के गणधर पद प्राप्त करने वालों को स्वत: होता है। शासन के प्रारंभ में रचना हो जाने पर भी उस के बाद की घटनाएँ लम्बी उम्र वाले गणधर यथासमय योग्य स्थान पर जोड सकते हैं / इस प्रकार घटनाएँ, कथानक और नामकरण यथासमय योग्य समझकर गणधर संपादित कर सकते हैं / सभी गणधरों के मोक्ष हो जाने के सैकडों वर्ष बाद भी बहुश्रुत पूर्वधर आदि बहुमति | 192