________________ 211 214 215 217 आगम निबंधमाला| 113 हरिणेगमेषी देव की सही जानकारी(शतक-५, प्र-७) 114| देवों को मन:पर्यवज्ञान जैसी क्षमता(शतक-५, प्र-९) 212 | आचार्य उपाध्याय के कर्तव्य पालन का फल(शतक-५) | श्रावक अनारंभी नहीं, सूक्ष्म अनुमोदन चालू(शतक-५,प्र-१५) 117 | महावीर द्वारा पार्श्व प्रभू के नाम से निरूपण (शतक-५,प्र-२४) 216 118 अबाधाकाल और आयुष्यकर्म विचारणा(शतक-६,प्र-४) | 119 | तमस्काय एक पानी परिणाम(शतक-६,प्र-७) ... 220 120 | मारणांतिक समुद्घात एक अनुप्रेक्षण (शतक-६,प्र-१०) | 121 | धान्यादि के सचित्त और ऊगने का स्वभाव(शतक-६,प्र-४)| 122 | देवों का नरक में जाना एवं परमाधामी(शतक-६,प्र-१७) 123 | प्राप्त शुद्धाहार शुद्धाशुद्ध हो जाता (शतक-७,प्र-६) 124| परमावधिज्ञानी चरमशरीरी होते (शतक-७,प्र-१३) 125 कोणिक चेडा युद्ध में मरने वालों की संख्या समीक्षा(श.७) 229 126 | सदोष या निर्दोष आहार देने का फल(शतक-८,प्र-१४) 127 | सूर्य का प्रकाश तेज मंद क्यों ?(शतक-८,प्र-२१) 231 128 | आठ कर्मबंध के कारणों का विस्तार(शतक-८,प्र-२५) ऊर्ध्व अधो तिर्यक लोक स्वरूप(शतक-११,प्र-९,१०) 130 | दसवाँ ग्यारहवाँ पौषध शंख पुष्कली(शतक-१२) 131 | पुद्गल परावर्तन स्वरूप(शतक-१२,उद्दे-४) 132 | 18 पाप स्वरूप तथा भेद 246 133 / प्रत्येक जीव के साथ संबंध :अनंतबार(शतक-१२,उद्दे-७) 247 * 134 | पांच प्रकार के देव व अल्पबहुत्व(शतक-१२,उद्दे-९) 247 135 / लोकमध्य तथा तीनों लोक मध्य कहाँ (शतक-१३,उद्दे-४) 136 | श्रावक के प्रत्याख्यान में करण योग 248 137 | संथारा-दीक्षा तारीख का रहस्य 138 | अपनी बात-स्वास्थ्य सुधार एवं प्रायश्चित्तीकरण 255 230 232 129 235 240 245 247 249