________________ आगम निबंधमाला चारित्र 4. मनं 5. वचन 6. काय विनय 7. लोकोपचार विनय है / .. काया से उपयोग पूर्वक गमनागमन उल्लंघन-प्रलंघन, बैठना उठना भी विनय में कहा गया है। अविवेकी प्रवत्तियाँ नहीं करना भी विनय है / अर्थात् सभी प्रकार की विवेक युक्त अनाश्रवी वति से व्यवहार करने वाला गुणसम्पन्न व्यक्ति विनीत कहा जाता है / इस प्रकार सभी उन्नत गणों को विनय कहा जा सकता है / जिनका उक्त सात भेदों में समावेश हो जाता है / इसी अपेक्षा से उत्तराध्ययन सूत्र के पहले और ग्यारहवें अध्ययन में अनेक गुणों वाले को विनीत कहा गया है। टिप्पण-१-आत्म शुद्धि बिना विनय के संभव नहीं है / विनय व्यक्ति को अहंकार से मुक्त करता है और यह स्पष्ट है कि आत्मगत दोषों में अहंकार ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दोष है / जैनागमों में विनय शब्द का तात्पर्य आचार के नियमों से भी है / उसके अनुसार आचार के नियमो का सम्यक् रूप में परिपालन ही विनय है। दूसरे अर्थ में विनय विनम्रता का सूचक है / इस दूसरे अर्थ का तात्पर्य है वरिष्ट एवं गुरुजनों का सन्मान करते हुए उनकी आज्ञाओं का पालन करना व उन्हें आदर प्रदान करना / ९-वैयावत्य :- आचार्य आदि 10 संयमवान महापरुषों की यथायोग्य सेवा करना वैयावत्य तप है / यथा- 1. आचार्य 2: उपाध्याय 3. स्थविर 4. तपस्वी 5. रोगी 6. नवदीक्षित 7. कुल 8. गण 9. संघ 10. साधर्मिक श्रमण / इन्हें आहार, पानी, औषध, वस्त्र-पात्र, प्रदान कर शारीरिक शाता पहुँचाना, वचन-व्यवहार से मानसिक समाधि पहुँचाना, वैयावत्य तप है। १०-स्वाध्याय :- इसके 5 प्रकार है- 1 वाचना 2 पच्छा 3 परिवर्तनाकंठस्थ ज्ञान का पुनरावर्तन 4 अनुप्रेक्षा 5 धर्म कथा / रुचि पूर्वक आगमों का, जिनवाणी का, भगवद् सिद्धान्तों का, कंठस्थ अध्ययन करना, वाँचन करना, मनन चिंतन अनुप्रेक्षण करना, प्रश्न-प्रतिप्रश्नों द्वारा अर्थ परमार्थ को समझना एवं इस उक्त स्वाध्याय आदि से प्राप्त अनुभव को भव्य जीवों के पथ प्रदर्शन के लिये प्रसारित प्रचारित करना अर्थात् प्रवचन देना, स्वत: उपस्थित परिषद के योग्य हितावह / 251