________________ आगम निबंधमाला किया जाता है / इसमें शरीर का परिकर्म सेवा आदि स्वयं किया जा सकता है, कराया जा सकता है / निहारिम- मत्यु के बाद शरीर का दाह संस्कार होता भी है और नहीं भी होता है / यह सागारी भी होता हैं / यथा- उपद्रव आने पर या रात्रि में / आचारांग आदि सूत्र में आजीवन अनसन का तीसरा प्रकार "इंगिनी मरण" कहा गया है यह मध्यम प्रकार का है अर्थात् पादपोपगमन अनसन की अपेक्षा इसमें कुछ सीमित छूट है / यथा- मर्यादित क्षेत्र में हाथ पाँव का संकोच विस्तार करना, कुछ समय खड़े रहना या बैठना, चंक्रमण करना आदि / "पादपोपगमन" में निश्चेष्ट होकर ध्यान में लीन बने रहना होता है / हलन चलन भी नहीं किया जाता है / किन्तु लघुनीत, बड़ीनीत का प्रसंग आवे तो उठकर यथास्थान जाना आना किया जा सकता है / किन्तु संथारे के स्थान पर रहे हुए ही मल मूत्र नहीं किया जाता है / निहारिम अनिहारिम दोनों तरह का होता है / उपसर्ग आने पर भी पादपोपगमन सथारा किया जा सकता है। सलेखना का कालक्रम :- (उत्तरा. अ. 36) . _मुनि अनेक वर्षों तक संयम का पालन कर इस क्रमिक तप से अपनी आत्मा की संलेखना करे / यह संलेखना, संथारे के पूर्व की जाती है / संलेखना उत्कृष्ट बारह वर्ष, मध्यम एक वर्ष तथा जघन्य छह मास की होती है / बारह वर्ष की संलेखना करने वाला मुनि पहले चार वर्ष में विगयों का परित्याग करे / दूसरे चार वर्षों में फुटकर विचित्र तप का आचरण करे / फिर दो वर्षों तक एकान्तर तप करे व पारणे के दिन आयबिल करे / ग्यारहवें वर्ष के पहले छः महीनों में कठिन तप न करे / ग्यारहवे वर्ष के पिछले छः महीनों में कठिन तप करे / इस पूरे वर्ष में पारणे के दिन आयबिल करे / बारहवें वर्ष में मुनि कोटि सहित आयंबिल करे फिर पक्ष या मास का अनशन तप करे / २-उणोदरी :- इच्छा व भूख से कम खाना, कम उपकरण रखना, [244]