SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम निबंधमाला जीवन श्रमण जैसा होना जरूरी नहीं होता है। इसलिए उसे पारिवारिक 'व्यक्ति सांसारिक वार्ता पूछ सकता है। अतः किसी के पूछने पर'मैं जानता हूँ या मैं नहीं जानता हूँ' इतना ही उत्तर देना कल्पता है। इससे अधिक उत्तर देना नहीं कल्पता है। किसी वस्तु के यथा स्थान पर न मिलने पर इतना उत्तर देने से भी पारिवारिक लोगों को संतोष हो सकता है। इस प्रतिमा में श्रावक क्षुरमुंडन कराता है अथवा बाल रखता है। (11) ग्यारहवीं श्रमणभूत प्रतिमाधारी श्रावक शक्य संयमी जीवन की सभी मर्यादाएँ स्वीकार करता है। किन्तु यदि लोच न कर सके तो मुंडन करवा सकता है / वह भिक्षु के समान गवेषणा के सभी नियमों का पालन करता है / इस प्रतिमा की अवधि समाप्त होने के बाद वह प्रतिमाधारी सामान्य श्रावक जैसा जीवन बिताता है। इसी कारण इस प्रतिमा- आराधनकाल में वह स्वयं को भिक्षु न कहकर 'मैं प्रतिमाधारी श्रावक हूँ' इस प्रकार कहता है। . पारिवारिक लोगों से प्रेम सम्बन्ध का आजीवन त्याग न होने के कारण वह ज्ञात कुलों में ही गोचरी के लिए जाता है / यहाँ ज्ञात कुल से पारिवारिक और अपारिवारिक ज्ञातिजन सूचित किये गये है। भिक्षा के लिये घर में प्रवेश करने पर वह इस प्रकार सूचित करे कि 'प्रतिमाधारी श्रावक को भिक्षा दो।' श्रावक प्रतिमा सम्बन्धी भ्रम का निवारण श्रावक प्रतिमा के सम्बन्ध में यह भी एक प्रचलित कल्पना है कि 'प्रथम प्रतिमा में एकान्तर उपवास, दूसरी प्रतिमा में निरंतर बेले, तीसरी में तेले यावत् ग्यारहवीं प्रतिमा में ग्यारह-ग्यारह की तपश्चर्या निरन्तर की जाती है।' किन्तु इस विषय में कोई आगम प्रमाण उपलब्ध नहीं है तथा ऐसा मानना संगत भी नहीं है, क्यों कि इतनी तपस्या तो भिक्षु प्रतिमा में भी नहीं की जाती है। श्रावक की चौथी प्रतिमा में महीने के छ: पौषध करने का विधान है यदि उपरोक्त कथन के अनुसार तपस्या की जाए तो चार मास में 24 चौले की तपस्या करनी आवश्यक होती है। प्रतिमाधारी द्वारा तपस्या तिविहार या बिना पौषध के करना भी उचित नहीं है। अतः 24 चौले पौषध 236
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy