________________ आगम निबंधमाला कुछ प्रतियों में से दंसणसावए भवइ' ऐसा पाठ भी मिलता है उसका तात्पर्य भी यही है कि वह दर्शनप्रतिमाधारी व्रती श्रावक है क्यों कि जो एक भी व्रतधारी नहीं होता है उसे दर्शनश्रावक कहा जाता है। किन्तु प्रतिमा धारण करने वाला श्रावक पहले 12 व्रतों का पालक तो होता ही है। अतः उसे केवल 'दर्शन श्रावक' ऐसा नहीं समझना चाहिए। (2) दूसरी व्रत प्रतिमा धारण करने वाला यथेच्छ एक या अनेक, छोटे या बड़े कोई भी नियम प्रतिमा के रूप में धारण करता है जिनका उसे अतिचार रहित पालन करना आवश्यक होता है। (3) तीसरी सामायिक प्रतिमाधारी श्रावक सुबह, दोपहर व शाम को नियत समय पर ही सदा निरतिचार सामायिक करता है एवं देशावकाशिक(१४ नियम धारण) व्रत का आराधन करता है तथा पहली दूसरी प्रतिमा के नियमों का भी पूर्ण पालन करता है। (4) चौथी पौषध प्रतिमाधारी श्रावक पूर्व की तीनों प्रतिमाओं के नियमों का पालन करते हुए महीने में पर्व-तिथियों,के छह प्रतिपूर्ण पौषध का सम्यक् प्रकार से आराधना करता है। इस प्रतिमा के धारण करने से पहले भी श्रावक पौषध व्रत का पालन तो करता ही है किन्त प्रतिमा के रूप में नहीं। (5) पाँचवीं कायोत्सर्ग प्रतिमाधारी श्रावक पहले की चारों प्रतिमाओं का सम्यक् पालन करते हुए पौषध के दिन सम्पूर्ण रात्रि या नियत समय तक कायोत्सर्ग करता है। (6) छट्ठी ब्रह्मचर्य प्रतिमा का धारक श्रावक पूर्व पाँच प्रतिमाओं का पालन करता हुआ सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। साथ ही इस ब्रह्मचर्य प्रतिमा में स्नान का और रात्रि भोजन का त्याग करता है तथा धोती की एक लांग खुली रखता है। विशेष :- पाँचवीं-छट्ठी प्रतिमा के मूल पाठ में लिपि-दोष से कुछ पाठ विकृत हुआ है जो ध्यान देने पर स्पष्ट समझ में आ सकता हैप्रत्येक प्रतिमा के वर्णन में आगे की प्रतिमा के नियमों के पालन का निषेध किया जाता है। पाँचवी प्रतिमा में छट्ठी प्रतिमा के विषय का निषेध पाठ विधि रूप में जुड़ जाने से और चूर्णिकार द्वारा सम्यक् [234