________________ आगम निबंधमाला दुःखपूर्ण यह काल होता है। इस समय में दिखने मात्र का भी सुख नहीं रहता है। वह घोर दुःख वर्णन नरक के दुःखों की स्मृति कराने वाला होता है। इस आरे का वर्णन भगवती सूत्र, श.७, उद्दे.६ में है / उत्सर्पिणी काल :प्रथम आरा :- उत्सर्पिणी के पहले आरे का वर्णन अवसर्पिणी के छठे आरे के अंतिम स्वभाव के समान है अर्थात् छटे आरे के प्रारम्भ में जो प्रलय का वर्णन है वह यहाँ नहीं समझना किन्तु उस आरे के मध्य और अंत में जो क्षेत्र एवं जीवों की दशा है वही यहाँ भी समझना। यह आरा 21000 वर्ष का होता है। उत्सर्पिणी काल का प्रारम्भ श्रावण वदी एकम को होता है। शेष आरे किसी भी दिन महिने में प्रारम्भ हो सकते हैं। उसका कोई नियम नहीं है क्यों कि आगम में वैसा कथन नहीं है अपितु ऐसा नियम मानने पर आगम विरोध भी होता है। यथा- ऋषभदेव भगवान माघ महीने में मोक्ष पधारे उसके तीन वर्ष साढ़े आठ महिने बाद श्रावण वदी एकम किसी भी गणित से नहीं आ सकती। अतः चौथा आरा किसी भी दिन प्रारम्भ हो सकता है / उसी तरह अन्य आरे भी समझ लेना / मूलपाठ में केवल उत्सर्पिणी का प्रारम्भ श्रावण वदी एकम से कहा गया है। अन्य आरों के लिये मनकल्पित नहीं मानना ही श्रेयस्कर है। दूसरा आरा :- 21+21-42 हजार वर्ष का (छट्ठा और पहला आरा) महान दुःखमय समय व्यतीत होने पर उत्सर्पिणी का दूसरा आरा प्रारम्भ होता है। इसके प्रारंभ होते ही (1) सात दिन पुष्कर संवर्तक महामेघ मूसलधार जलवृष्टि करेगा। जिससे भरतक्षेत्र की दाहकता ताप आदि समाप्त होकर भमि शीतल हो जायेगी। (2) फिर सात दिन तक क्षीर मेघ वर्षा करेगा। जिससे अशुभ भूमि में शुभ वर्ण गंध रस आदि उत्पन्न होंगे। (3) फिर सात दिन निरंतर घृत मेघ वृष्टि करेगा जिससे भूमि में स्नेह स्निग्धता उत्पन्न होगी। (4) इसके अनंतर फिर अमृत मेघ प्रकट होगा, वह भी सात दिन रात निरंतर वर्षा करेगा। जिससे भूमि में वनस्पति को उगाने की बीजशक्ति उत्पन्न होगी। (5) इसके अनंतर रस मेघ प्रकट होगा, वह भी सात दिन 201