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________________ आगम निबंधमाला (8) उपवास-इसमें सूर्योदय से लेकर अगले दिन तक चारों आहार का त्याग किया जाता है अथवा तिविहार उपवास भी किया जा सकता है, जिसमें दिवस में गर्म या अचित्त पानी पिया जा सकता है / (9) दिवस चरिम- शाम के भोजन के बाद अवशेष चौथे प्रहर में चारों आहार का त्याग किया जाता है, उसे दिवस चरिम प्रत्याख्यान कहते हैं / यह प्रत्याख्यान सूर्यास्त के पूर्व कभी भी किया जा सकता है। यह प्रत्याख्यान हमेशा किया जा सकता है अर्थात् आहार के दिन या आयंबिल, निवी एवं तिविहार उपवास में भी यह दिवस चरिम प्रत्याख्यान किया जा सकता है। इसमें सूर्यास्त तक का अवशेष समय एवं पूर्ण रात्रि का काल निश्चत होता है। अतः यह भी अद्धा (समय मर्यादा वाला) प्रत्याख्यान है। इसलिये इस प्रत्याख्यान में सर्व समाधि प्रत्ययिर्क आगार कहा गया है / (10) अभिग्रह- आगम निर्दिष्ट द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव संबंधी विशिष्ट नियम अभिग्रह करना और अभिग्रह सफल नहीं होने पर निर्धारित तपस्या करना। यह अभिग्रह मन में धारण किया जाता है, प्रकट नहीं किया जाता है। समय पूर्ण हो जाने के बाद आवश्यक हो तो कहा जा सकता है। इन दस प्रत्याख्यानों में से कोई भी प्रत्याख्यान करने से छट्ठा प्रत्याख्यान आवश्यक पूर्ण होता है / दस प्रत्याख्यानों में आये 15 आगारों का अर्थ :(1) अनाभोग- प्रत्याख्यान की विस्मृति से, अशनादि चखना या खाना पीना हो जाय तो उसका आगार / (2) सहसाकार-वृष्टि होने से, दही आदि मंथन करते, गायादि दुहते, मुँह में छींटा चले जाय तो उसका आगार / (3) प्रच्छन्नकाल-सघन बादल आदि के कारण पोरिसी आदि का बराबर निर्णय न होने से, समय मर्यादा में भूल हो जाय, उसका आगार। (4) दिशामोह- दिशा भ्रम होने पर पोरिसी आदि का बराबर निर्णय न होने से समय मर्यादा में भूल हो जाय, उसका आगार / /
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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