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________________ आगम निबंधमाला वालों को इतनी सावधानी रखने कि आवश्यकता है कि उस दोष के अतिरिक्त तप, संयम, ज्ञान आदि की शुद्ध आराधना रखे, प्ररुपणा श्रद्धा शुद्ध रखे, भावों की पूर्ण शुद्धि रखे, किसी के प्रति मलीन विचार न हो / लेश्याओं के स्वरूप को समझ कर तीन अशुभ लेश्याओं को किंचित भी नहीं आने दे, दोष का दर्जी आगे न बढ़ पावे, यह सदा ध्यान रखे, शुद्धि करने की भावना और खेद रखे, तो वह नियंठे के दर्जे में रह सकता है, अन्यथा इन सावधानियों के न रहने पर वह असंयम में पहुँच जाता है / क्रमिक अपेक्षा से तो बकुश से प्रतिसेवना नियंठा ऊँचा होता है तथा पुलाक से बकुश के चरित्र पजवे अनंत गुण अधिक है और बकुश के उत्कष्ट पज्जवों से प्रतिसेवना कुशील के उत्कष्ट पज्जवे अनंतगुणे हैं / और अन्य अपेक्षा से दोनों आपस में छट्ठाणवडिया होने से व्यक्तिगत कोई बकुश किसी प्रतिसेवना कुशील से ऊँचे दर्जे में भी हो सकता है। इन दोनों नियंठों के असंयम में पहुँचने रूप खतरे की स्थिति सदा बनी रहती है / लेश्या अशुभ आ जाय या संयम पर्यव की वद्धि बराबर न होवे या पुलाक के उत्कष्ट चरित्र पजवों से अनंत गुण अधिक संयम पर्यव न रहे तो भी असंयम दशा आ जाती है / दोष की प्रवत्ति सीमा के क्षम्य दोष से आगे बढ़ जावे तो भी असंयम में चला जाता जीव को प्रारंभ में एक बार तो कषाय कुशील नियंठा आने पर ही फिर ये दोनों नियंठे आ सकते हैं / इसके बाद में इन दोनों का असंयम में सीधे आना जाना हो सकता है / तथा इन दोनों नियंठों का आपस में भी आना-जाना छटे-सातवें गुणस्थानवत् चालू रहता है। सावधानियाँ बराबर रहे तो इन नियंठों वाले असंयम में नहीं जाते हैं। .. दोष का दर्जा सूक्ष्म उत्तरगुण तक रहे तो शिथिल मानसता में बकुश नियंठा रह जाता है, और शिथिल मानस के बिना परिस्थिति या आवश्यकता से सीमित मूल गुण या उत्तर गुण के दोष तक में प्रतिसेवना कुशील नियंठा रह जाता है / / 49 /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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