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________________ आगम निबंधमाला एक दृष्टांत- जिस प्रकार पानी की बडी कोठी या टंकी का मालिक यदि लापरवाह वति वाला है और उसमें बारीक तराड़े हो जाय, पानी निरंतर निकले तो भी बहुत समय तक काम चल सकता है, ठीक कराने का ध्यान नहीं करे तो भी पानी संरक्षण और वितरण का कार्य बंद नहीं होता है। परन्तु यदि वे तराड़ें चौड़ी हो जाने पर भी लापरवाही चलावे तो पानी ज्यादा निकल जायेगा और सारी व्यवस्था बिगड़ जाएगी। इसी तरह बकुश के दोष की तराड़े बड़ी होने लग जाय तो संयम अवस्था खराब होकर असंयम हो जायेगा। प्रतिसेवना कुशील नियंठा मूल गुण और उत्तरगुण दोनों तरह के अमुक सीमा के दोष सेवन तक जीवन भर भी रह सकता है / इसमें शिथिलता और लापरवाही न होकर कोई कारण दशा की मुख्यता होती है / परिस्थिति, लाचारी, अशक्यता अथवा दोष का खेद खटक मन में रहने से बकुश की अपेक्षा कुछ बड़े(सीमा के) दोषों के सेवन में भी इसका संयम टिक सकता है। इस नियठे वाला दोष के समाप्त होते ही शुद्धि की भावना रखता है और शुद्धि करता है। फिर भी कभी कोई प्रसंग, परिस्थिति, लंबे समय के लिये आ जाय या आजीवन के लिये भी आ जाय तो भी इसकी सीमा का दोष होने पर यह नियंठा जीवन भर भी रह सकता है / . , इसके लिये छिद्र वाली टंकी का दृष्टांत समझना अर्थात् उसमें बोर, मोसंबी आदि जितने बड़े छिद्र हो जाय और उसको साधन जुटाकर ठीक करे तब तक कुछ समय लग सकता है और फिर छिद्र बंद कर देने से टंकी पुन: व्यवस्थित हो जाती है अथवा उस टंकी में खस-खस जितने अत्यंत छोटे कुछ छिद्र हो जाय और ठीक नहीं करे तो भी लंबे समय तक काम चल सकता है / क्यों कि उन टकियों में पानी के आवक की अपेक्षा छोटे-छोटे छिद्रों से निकलने वाला पानी नगण्य हो जाता है / उसी तरह प्रतिसेवना नियंठे में अन्य ज्ञान दर्शन चरित्र की बहुत पुष्टि चालू रहे तो इसके ये कुछ दोष सेवन नगण्य होकर सयम रह जाता है / __अत: संयम में किसी भी प्रकार का छोटा या बड़ा दोष लगाने 48
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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