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________________ आगम निबंधमाला 5. यथासूक्ष्म बकुश- विभूषा आदि की चालू प्रवत्तियो को लिहाज, दबाब आदि से सेवन करे तथा निष्कारण औषध सेवन, विगय सेवन एवं नशीले पदार्थ का सेवन करे / किसी भी चीज के प्रति लगाव रखे / आलस-निद्रा, प्रमाद में अनावश्यक अमर्यादित समय खर्च करे / संयम प्रवत्तियों को अविधि अविवेक व उतावल से करने की प्रवत्ति रखे / रसाशक्त बने और अनावश्यक अमर्यादित पदार्थों का सेवन करे, इत्यादि अनेक प्रवत्तियाँ करने वाला "यथासूक्ष्म बकुश" कहलाता है अर्थात् जिन प्रवत्तियों से विनय, वैराग्य, इन्द्रिय दमन, इच्छानिरोध, ज्ञान, तप आदि संयम गुणों के विकास में बाधा पड़ती है, उन प्रवत्तियों को करने वाला यथा सूक्ष्म बकुश कहा जाता है। 3. प्रतिसेवना कुशील- यह नियंठा भी संयम ग्रहण के प्रारम्भ में नहीं आता है। कुछ संयम पर्याय के बाद व पुलाक के उत्कष्ट संयम पर्याय से अनंत गुण अधिक पर्यव हो जाने पर कभी भी सकारण मूल गुण में या उत्तर गुण में अमुक सीमा के दोष सेवन करने पर यह नियंठा आता है / इस नियंठे वाले के दोष सेवन में शिथिल मानस की मुख्यता न होकर किसी प्रकार की लाचारी, असहनीय स्थिति, अथवा क्वचित् प्रमाद, कुतुहल, दर्प तथा अशुद्ध समझ होती है तथा ज्ञान आदि पाँच के निमित्त से दोष का सेवन किया जाता है / / इस नियंठे के दोष के दर्जे बकुश के दोषों से आगे के दर्जे के भी होते हैं / किन्तु शिथिलाचार मानस रूप में न होकर उपरोक्त लाचारी आदि कारण से या ज्ञानादि के निमित से होते है / लगे दोष की शुद्धि कर लेने पर यह नियंठा नहीं रहता है और विशुद्ध कषाय कुशील नियंठा आ जाता है / लगे दोष की शुद्धि तो नहीं करे किन्तु दोष रहित शुद्ध संयम के पालन में तत्पर हो जाए तो उसके यह नियंठा बना रहता है / लगे दोष की शुद्धि न करे और वह दोष प्रवति भी चालू रहे किन्तु उसके अतिरिक्त शुद्ध संयम अराधना में लग जाए तो भी यह नियठा बना रह सकता है / तथा यदि दोष का दर्जा इस नियंठे की सीमा तक का हो और प्रवति में शिथिलता का मानस न हो तो जीवन भर भी यह नियंठा रह सकता है। शुभ तीन लेश्या की मौजूदगी में ही यह नियंठा रहता है / अशुभ लेश्या के
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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