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________________ आगम निबंधमाला .. में कमी लाने वाली प्रमाद रूप अनावश्यक प्रवतियाँ करने वाला बकुश निर्ग्रन्थ कहलाता है / यह निर्ग्रन्थ मूल गुण में दोष नहीं लगाता है। इसके दोष की प्रवतियाँ सूक्ष्म दर्जे की, उत्तरगुण दोष के सीमा तक की व शिथिल मानस वति की होती है / दोष का दर्जा अपनी सीमा से आगे बढ़ जाने पर यह नियंठा नहीं रहता है / तब वह असंयम में या प्रतिसेवना कुशील नियंठा में चला जाता है। दोष की शुद्धि आलोचना प्रायश्चित के द्वारा करले तो भी यह नियंठा नहीं रह कर विशुद्ध कषाय कुशील नियंठा आ जाता है / लगे दोष की शुद्धि नहीं करे और कुछ प्रवतियाँ सूक्ष्मदोष की चालू रखे, उसके अतिरिक्त शुद्ध संयम आराधना में तत्पर बन जाय तो यदि दोष का दर्जा इसकी सीमा तक का हो तो यह नियंठा उत्कष्ट जीवन भर भी रह सकता है। यह नियंठा भी तीन शुभ लेश्या के रहने पर ही रहता है / अशुभ लेश्या के परिणाम होते ही इस नियंठे वाला असंयम में पहुँच जाता है। इस निर्ग्रन्थ के दोष सेवन में ज्ञान दर्शन आदि के निमित्त की प्रमुखता न रह कर शिथिल वति की प्रमुखता होती हैं अत: इसमें ज्ञानादि की अपेक्षा से भेद नहीं करके प्रवति की अपेक्षा 5 भेद कहे गये हैं / 1. आभोग बकुश- संयम विधि का, शास्त्र की आज्ञा का, तथा शिथिल प्रवतियों का व उनकी उत्पति के स्वरूप का जानकार अनुभवी होते हुए शिथिल मानस एवं लापरवाही से शिथिल प्रवति करने वाला आभोग बकुश कहलाता है। 2. अनाभोग बकुश- जो चली आई हुई प्रवत्ति के अनुसार, देखादेखी, संगति के अनुसार, शिथिल प्रवतियाँ करता है / जिसने शास्त्राज्ञा को नहीं समझा है, अत: अपनी प्रवति को ठीक समझकर या बिना कुछ समझे विचारे करता है, वह अनाभोग बकुश कहलता है / 3. संवुड बकुश- इस नियंठे के दर्जे की प्रवत्तियों को गुप्त रूप से करे विशेष प्रगट रूप में नहीं करे वह संवुड बकुश कहलाता है / 4. असंवुड बकुश- दुस्साहस और प्रवत्ति के बढ़ जाने से नि:संकोच होकर प्रगट रूप से उन प्रवत्तियों को करने वाला असंवुड बकुश कहलाता है।
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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