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________________ आगम निबंधमाला . . संयम स्वीकार करने के बाद होने वाली अनेक अवस्थाओं की यह बहुमुखी परिज्ञा कही गई है। प्रत्येक साधक इसे आत्म-परीक्षा का दर्पण समझ कर ध्यान पूर्वक इसमें अपना मुख देखें अर्थात् इस पर से आत्म निरीक्षण करे एवं मनुष्य भव को सार्थक करना हो, संयम आराधन करना हो तो अपना योग्य सुधार करे / -शुभं भवतु सर्व निर्ग्रन्थानाम् / नोट :- (1) निर्ग्रन्थ के छहों विभागों की विस्तत जानकारी एवं शिथिलाचार और शुद्धाचार विशेष का स्पष्टीकरण अन्य निबंध में देखें / (2) पासत्था आदि दस की भी विस्तत सप्रमाण (भाष्यगाथा युक्त) व्याख्या भी यथाप्रसंग अन्य निबंध में देखें। निबंध-७ छः प्रकार के निग्रंथों का विश्लेषण भगवती सूत्र श. 25 उद्देशक में मौलिक रूप से पाँच निर्ग्रन्थ कहे गये हैं एवं बाद में 36 द्वारों से छः निर्ग्रन्थों का वर्णन किया गया है अर्थात् कुशील निर्ग्रन्थ के दो भेद कर दिए गये है- 1. प्रतिसेवना कुशील 2. कषाय कुशील / इस प्रकार कुल छ: निर्ग्रन्थ निम्न हैं१. पुलाक 2. बकुश 3. प्रतिसेवना कुशील 4. कषाय कुशील 5. निर्ग्रन्थ 6. स्नातक / प्रथम द्वार में इन छहों के पाँच-पाँच भेद करके स्वरूप बताया है / फिर शेष 35 द्वारों से अनेक प्रकार का विश्लेषण किया गया है / उस विश्लेषण को दृष्टिगत रखते हुए यहाँ इन छहों नियंठों का क्रमशः पारिभाषिक एवं सैद्धांतिक विषद् विश्लेषण किया जा रहा है। 1. पुलाक नियंठा :- संयम ग्रहण करने के प्रारंभ में कषाय कुशील नियंठा प्राप्त होता है / उसमें कुछ संयम पर्याय वद्धि और 9 पूर्वो का ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद किसी साधक को पुलाक लब्धि उत्पन्नप्राप्त होती है। वह जब किसी आवश्यक प्रसंग पर ज्ञान, दर्शन, चारित्र सम्बन्धी प्रयोजन से उस लब्धि का प्रयोग करता है तब उस लब्धि प्रयोग अवस्था में अंतर्मुहूर्त के लिये जो नियंठा रहता है वह पुलाक नियंठा कहा जाता है / पुलाक निर्ग्रन्थ कभी भी साधु आदि पर आई 40
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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