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________________ आगम निबंधमाला 2- प्रतिसेवना कुशील निर्ग्रन्थ :- संयम समाचारी का आगमानुसार पालन करने की रूचि के साथ-साथ प्रयत्न करते हुए भी शारीरिक परिस्थिति से या श्रुत ज्ञान की अभिवद्धि के लिए एवं संघ हित के लिए, समय-समय पर मूल गुण में या उत्तर गुणों में दोष का सेवन करता है साथ ही उसे दोष समझ कर यथासमय शुद्धि भी करता है और कभी परीषह उपसर्ग सहने की अक्षमता में भी दोष लगा लेता है एवं खेद करके शुद्धि कर लेता है। ... . परिस्थितिवश दोष सेवन कर परिस्थिति के दूर होते ही उस दोष को छोड़ देता है अर्थात् किसी भी दोष की अनावश्यक प्रवत्ति को लंबे समय तक नहीं चलाता है / इस प्रकार की साधना की अवस्था में प्रतिसेवना कुशील निर्ग्रन्थ रहता है / किसी भी दोष को लंबे समय तक चलाने पर, शुद्धि करने का लक्ष्य न रखने पर, अन्य अनेक समाचारी में भी शिथिल हो जाने पर अथवा तो अशुद्ध प्ररूपण करने पर यह साधक क्रमशः निर्ग्रन्थ विभाग से च्युत हो जाता है / कष्ण, नील, कापोत इन तीनों अशुभ लेश्या के परिणाम आने पर तो साधक इस निर्ग्रन्थं विभाग से तत्काल ही गिर जाता है अर्थात् संयम के छठवें सातवें आदि गुणस्थानों में नहीं रहता है / तब वह शिथिलाचारी विभाग के पासत्था आदि में पहुँच जाता है। ३-कषायकुशील निर्ग्रन्थ :- यह साधक संयम समाचारी का निरतिचार पालन करता है अर्थात् पाँच महाव्रत, पाँच समिति एवं सम्पूर्ण संयम विधियों का आगमानुसार पालन करता है / किन्तु संज्वलन कषाय के उदय से कभी क्षणिक एवं प्रगट रूप कषाय में परिणत हो जाता है / किन्तु उस कषाय के कारण किसी भी संयमाचरण को दूषित नहीं करता है। अनुशासन चलाने में या अनुशासित किये जाने में अथवा किसी के असद्व्यवहार करने पर क्षणिक क्रोध आ जाता है। वैसे ही क्षणिक मान, माया, लोभ का आचरण भी इसके हो जाता है / इन कषायो की अवस्था बाहर से दिखने में कैसी भी क्यों न हो किन्तु अन्तर में / 36 - -
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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