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________________ आगम निबंधमाला ___ वास्तव में समझना यह है कि देवर्द्धि के आगम लेखन संकलन पर्व दिगंबर मत प्रचलन या आग्रहयुक्त परंपरा चली होती और उनके ग्रंथो में श्वेतांबर धर्म का खंडन और खुद का मंडन प्रारंभ हो गया होता तो शास्त्र लेखन संकलन एवं नये शास्त्र संपादन में श्वेतांबर क्यों पीछे रहते, वे भी, दिगंबरों का खंडन शास्त्रों में घुसाते और नये शास्त्रों में उन्हें जडमूल से उखाडने का लेखन करते, यह छद्मस्थ मानव स्वभाव रुक नहीं सकता / किंतु देवधि के संकलन संपादन, लेखन से आये आज के उपलब्ध आगमों में दिगंबरों का कहीं भी खंडन होवे ऐसी एक लाइन भी नहीं है / उल्टे में अचेल धर्म की मुक्त दिल से प्रशंसा प्ररूपणा इन शास्त्रो में है / इससे स्पष्ट है कि श्वेतांबर के शास्त्र मूल शासन परंपरा से प्राप्त प्राचीन एवं एकांत के आग्रह, दुराग्रह, मताग्रह की गंध से रहित है / इसीलिये ऐसा कथन किया गया कि आगम लेखन संकलन के बाद दिगंबर धर्म का आग्रह चला है / अत: उपलब्ध खोटे इतिहास तो अपने को प्राचीन होने का खोटा सिक्का लगवाने की करामातों से बने बनाये होने में कोई आश्चर्य नहीं है / मध्यकाल में ऐसी कई करामातें हुई है / खोटे-खोटे शिलालेख, मूर्तियाँ भी बना बना कर जमीन में गाड़ दी गई हैं। मूर्तिपूजक :- दिगंबरों के बाद श्वेतांबरो में समय प्रभाव से शिथिलाचार एवं लोकेषणा के पनपने से मूर्ति मंदिर धर्म समुत्पन्न किया गया जो भस्मग्रह के प्रभाव के कारण पूर्णशिखर पर पहुँचता गया है / फिर भी ज्ञानी ध्यानी, प्रकांड विद्वान संत, आचार्य समय-समय पर होते रहे हैं। जिन्होंने आगम सेवा, जिनशासन सेवा प्रभावना अपनी-अपनी सीमा में अवश्य करी है / उसी से उतरता-चड़ता, गिरता-पड़ता जिन शासन वीर निर्वाण के 2000 वर्ष तक आगम भाषा में अपेक्षा से अवनतोवनत चलता रहा अर्थात् कुल मिलाकर हायमान अवस्था में उत्तरोतर बढता रहा। लोकाशाह : क्रियोद्धार :-वीर निर्वाण 2001 में उन्ही शिथिल संत वर्गों के लोकागच्छ नामक गच्छ में से कुछ संत भस्मग्रह के समाप्ति निमित्त आगे आये और क्रियोद्धार प्रारंभ किया / अनेक संकटों से | 31 /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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