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________________ आगम निबंधमाला उपद्रव निमित्त तीर्थंकर स्वयं छ: महिना अस्वस्थ रहे। लोगों में अफवाहें चली कि जैनो के दो तीर्थंकर आपस में झगडे और एक कहे तूं छ: महिने में मर जायेगा, दूसरा कहे तूं सात दिन में मर जायेगा / वास्तव में सात दिन में गौशालक अत्यंत क्लेश पाकर मर गया और भगवान महावीर स्वामी 6 मास बाद पूर्ण स्वस्थ पूर्ववत् बने / उसके बाद 15-1/2 साढे पंद्रह वर्ष सुखपूर्वक सर्वज्ञ-तीर्थंकर अवस्था में विचरे / जमाली :- भगवान के द्वारा दीक्षित महापुण्यशाली 500 पुरुषों के साथ दीक्षा लेने वाला खुद का संसारी अति निकट का रिस्तेवाला (जवाई एवं भाणजा- कथाओं में वर्णन है) जमाली अणगार केवली नहीं होते हुए भी अपने को भगवान के समक्ष केवली होने की सेखी मारने लगा और भगवान एवं गणधर गौतम स्वामी के द्वारा भी सही . रस्ते नहीं लगा एवं गलत मान्यता. और मिथात्व में आकर उसका अलग पंथ चोथे आरे में चलता रहा। निह्नव:- भगवान के निर्वाण बाद भी कितने निन्हव जिनशासन में छोटी छोटी बातों को लेकर होते रहे / तीर्थंकर गणधर की मौजूदगी में भी जमाली छोटी सी बात में उलझा रहा तो फिर बाद के शासन में अपने अहं में अपनी तानने वालों को कौन कैसे समझावें / दिगंबर :- निह्नवों की संख्या सात प्रसिद्ध हुई / उसके उपरांत आगम लेखन के बाद वीर निर्वाण 1000 वर्ष बाद जैन दिगंबर मत नया खडा हुआ / नये ग्रंथ बनाये / जिनागमों को अमान्य किया / और एकांत नग्नत्व से ही साधुपन और मोक्ष होना कहने लगे / वस्त्र का खंडन और वस्त्र बिना रह नहीं सकने के कारण स्त्री मुक्ति का निषेध मनमाने शरू किया। प्रश्न- दिगंबर तो देवर्धिगणि के शास्त्र लेखन के पहले हो गये थे ऐसा सुनने जानने में आता है तो 1000 वर्ष बाद का कथन क्या उचित है ? समाधान-यह एक वर्तमान प्रवाह है जो देवर्द्धि के बाद कई झूठ के साथ बनता चलता रहा है / कोई भी अपने को प्राचीन सिद्ध करने के लिये कुछ भी झूठ या प्रपंच करने लग गये थे / / 30
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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