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________________ आगम निबंधमाला निबंध-६५ क्रियोद्धार शब्द की वास्तविकता जब किसी भी समाज में, संघ में, राज्य में, देश में चल रही सुव्यवस्थित परंपरा में, नीति में, सिद्धांतो में, व्यवस्था में; पक्षांधता से, मूर्खता से (डेढ होयिारी से), मूढता से (समझ भ्रम से), अंधानुकरण से, अबूझ चलन से, आपा-धापी से, व्यक्ति व्यामोह से, सत्ता और पुण्य बल के दुरुपयोग से, निष्क्रिय भेडचाल की बुद्धिवाले लोगों की मदद से; अन्याय, अनीति, मनमानी, अव्यवस्था, स्वार्थ, वैमनस्य, दुर्भावना, कषायभावना, उचित परपराओं से छेडछाड चलने लगती है; उसकी गला-डूब अति होने लगती है; अंधानुकरण चलने लगता है; तब कोई सूज्ञ समूह या सशक्त-समर्थ व्यक्ति, उसके सामने आवाज उठावे, क्रातिकारी कदम उठावें; उस अधानुकरण के छेदन रूप में सुदर्शन चक्रवत् बगावत खडी करे तथा खोटे कदम उठाने वालों के सामने अवरोध का वातावरण खडा करके; सही, न्याय संगत, गुरु वडीलों के आज्ञानुरूप निर्देशानुरूप वक्तव्य एवं प्रवर्तन; पूरी शक्ति के साथ प्रारंभ कर सफलता के शिखर को छूने में दत्तचित्तपुरुषार्थशील बने; उसी हिम्मत, उत्साह की प्रवृत्ति का नाम ही क्राति कहो, क्रियोद्धार कहो, सत्य प्रकाश कहो, सत्योद्धार कहो; सभी एक अर्थ--भाव को प्रगट करने वाले हैं। वह अटूट हिम्मती अदम्य उत्साही व्यक्ति या समूह क्रियोद्धारक या क्रांतिकर्ता, सत्योद्धारक एवं न्यायमार्ग प्रकाशक कहलाता है / उसके न्यायपूर्ण आचरण एवं वक्तव्य तथा निर्णय से अनेक सत्यनिष्ठ एवं अव्यवस्था-अन्याय से दुःखी, किकर्तव्य विमूढ तथा सत्यमार्गचाहक व्यक्तियों का अन्तर्मानस अनुपम आनंद से, अहोभावों से, सच्ची आत्म समाधि से अपने आपको कृतकृत्य एवं अनुपम उपलब्धि से महा भाग्यशाली होने का आभास-अनुभव करता है / तत्फल स्वरूप वे लोग अपने रुके हुए विकास को दुगुनी, अनेक गुणी, हजारों गुणी शक्ति के साथ प्रगतिशील करने के महान उत्साह में आ जाते हैं / जिससे वे भी अपने एवं अपने सहचारियों के तथा सत्यान्वेषी पुण्यवान जीवों के लिए सन्मार्ग प्रकाशक एवं सच्ची आत्मशांति-संतुष्ठी प्रदायक बनते हैं / यों ऐसे क्रांतिकर्ता, क्रियोद्धारक व्यक्ति या समूह दूसरों के महान उपकारी होने के साथ साथ अपनी आत्मा के लिए भी इस भव, पर भव के लिए महान उपकारी सिद्ध होते हैं / -
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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