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________________ आगम निबंधमाला के प्रति पवित्र नहीं बनावे, प्रेम की धारा नहीं बहाकर राग-द्वेष की धारा चालु रखें तो इसमें धर्म की शान कैसे बढ़ेगी?? अत: एकता का प्रयास करना अच्छा होते हुए भी उसके अभाव में हतोत्साह नहीं होना चाहिये किन्तु उस दिन अपना व्यापार और पाप कार्य बन्द कर अपनी आत्मा को परम पवित्र बनाकर धर्म की आराधना में तल्लीन बन जाना चाहिए / बिना छुट्टी के छुट्टी ले कर धर्म ध्यान करना चाहिए / संसार हेतु अनेकों छुट्टियाँ ली जा सकती है तो क्या धार्मिक पर्व के लिए एक छुट्टी भी जैनी अपनी इच्छा से नहीं ले सकते हैं ? और सरकारी छुट्टी की आशा-अपेक्षा से हतोत्साह होते रहें, यह ठीक नहीं हैं / अत: सरकार माने या न माने सारा जैन समाज यह दृढ़ निश्चय कर ले कि संवत्सरी के दिन हम कोई भी व्यापार नहीं करेंगे, दुकान नहीं खोलेंगे, नौकरी पर नहीं जाएंगे और दिन रात धर्माराधन में लगायेंगे तो स्वत: ही सभी जैनों के लिए छुट्टी हो जाएगी और श्रेष्ठ पर्वाराधन हो सकेगा। स्वयं का त्याग ही, श्रेष्ठ त्याग है / संवत्सरी एकता, समाज का भाग्य है // निबंध-५६ जैन एकता सुझाव (1) किसी एक लौकिक पंचांग को प्रमाणभूत मानकर उसमें निर्दिष्ट ऋषिपंचमी के दिन सम्पूर्ण जैन समाज संवत्सरी पर्व मनावें / (2) उसी स्वीकत पंचांग में निर्दिष्ट पक्ष के अंतिम दिन पक्खी, चातुर्मासी की जाए। (3) महावीर जयन्ति, आयंबिल ओली आदि भी उसी पंचांग में निर्दिष्ट दिन में की जावे अर्थात् किसी एक पंचांग को सर्व सम्मति से संपूर्ण जैन समाज स्वीकार करे / (4) उदय तिथि, अस्त तिथि एवं घड़ी पल आदि के आग्रह मन कल्पित है / आगम काल से प्राचीन व्याख्या काल तक नहीं थे / वे आग्रह आगमाधार रहित है / पूर्वाचार्यों के निर्णय से विपरीत है / 100-200 या कुछ वर्षों से चले हैं / अत: इन आग्रहों को छोड़कर निर्णित | 208
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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