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________________ आगम निबंधमाला साधर्मिक या सांभोगिक साधुओं के उद्देश्य से बनाया गया आहार आदि औद्देशिक दोष वाला होता है। ऐसे आहार आदि को ग्रहण नहीं करना। (3) शय्यातर पिंड़कल्प- शय्यादाता(मकान मालिक) का आहारादि ग्रहण नहीं करना। (4) राजर्पिड़ कल्प- मूर्धाभिषिक्त राजाओं का आहारादि नहीं लेना। (5) कृतिकर्मकल्प- रत्नाधिकको वंदन आदि विनय-व्यवहार करना। (6) व्रतकल्पपाँच महाव्रतों का पालन करना अथवा चार याम का पालन करना / चार याम में चौथे और पाँचवें महाव्रत का सम्मिलित नाम 'बहिद्धादाणं' है / (7) ज्येष्ठकल्प- जिसकी बड़ी दीक्षा(उपस्थापना) पहले हुई हो, वह ज्येष्ठ कहा जाता है साध्वियों के लिये सभी साधु ज्येष्ठ होते हैं। अतः उन्हें ज्येष्ठ मानकर व्यवहार करना। (8) प्रतिक्रमण कल्प- नित्य नियमित रूप से दैवसिक एवं रात्रिक प्रतिक्रमण करना / (9) मासकल्प- हेमंत-ग्रीष्म ऋतु में विचरण करते हुए किसी भी ग्रामादि में एक मास से अधिक नहीं ठहरना तथा एक मास ठहरने के बाद वहाँ दो मास तक पुनः आकर नहीं ठहरना। साध्वी के लिये एक मास के स्थान पर दो मास का कल्प समझना। (10) चातुर्मासकल्प- वर्षा ऋतु में चार मास तक एक ही ग्रामादि में स्थित रहना किन्तु विहार नहीं करना। चातुर्मास के बाद उस ग्राम में नहीं रहना। एवं आठ मास(और बाद में चातुर्मास काल आ जाने से बारह मास) तक पुन: वहाँ आकार नहीं रहना। ये दस ही कल्प प्रथम एवं अंतिम तीर्थंकर के साधु-साध्वियों को पालन करना आवश्यक होता है। मध्यम तीर्थंकरों के साधुसाध्वियो को चार कल्प का पालन करना आवश्यक होता है, शेष छः कल्पों का पालन करना आवश्यक नहीं होता। चार आवश्यक कल्प:- 1. शय्यातरपिड़कल्प, 2. कृतिकर्मकल्प, 3. व्रतकल्प, 4. ज्येष्ठकल्प। छ: ऐच्छिक कल्पों का स्पष्टीकरण :- (1) अचेल- अल्प मूल्य या बहुमूल्य, स्वाभाविक, किसी भी प्रकार के वस्त्र अल्प या अधिक परिमाण में इच्छानुसार या मिले जैसे ही रखना। तथापि काले, पीले, लाल रंग के चद्दर, चोलपट्टे या मुहपत्ति नहीं रखते; सफेद वस्त्र ही रखते हैं किन्तु सफेद आसन आदि रंगीन किनारी वाले हो तो रख सकते हैं, क्यों कि विभिन्न रंग के वस्त्र तो किसी भी धर्म मजहब के सन्यासी नहीं रखते। सभी के कोई न कोई ए क वेश भूषा, रंग निश्चित होता है। अत: जिनशासन में श्वेत वस्त्र की आवश्यकता तो समझना ही। [ १८रा
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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