________________ आगम निबंधमाला (15) भोजन के अनंतर संकुचित पेट रखकर नहीं बैठना एवं नहीं सोना / (16) भिक्षु को विहार या भिक्षाचारी आदि श्रम कार्य अवश्य करना अथवा तपश्चर्या या खड़े-रहने की प्रवत्ति रखना / (17) उत्तराध्ययन सूत्र, आचारांग सूत्र, सूयगडांग सूत्र एवं दशवैकालिक सूत्र की स्वाध्याय वाचना अनुप्रेक्षा आदि करते रहना। (18) नियमित भक्तामर स्तोत्र या प्रभू भक्ति एवं आसन-प्राणायाम अवश्य करना। (19) सोते समय और उठते समय कुछ आत्महित विचार-ध्यान अवश्य करना। (20) क्रोध के प्रसंग उपस्थित होने पर मौन करना, आवेश युक्त बोलने की प्रवत्ति का त्याग करना / (21) यथासमय स्वाध्याय, ध्यान और कायोत्सर्ग अवश्य करना / ये सावधानियाँ रखना, गच्छगत और एकाकी विहारी सभी तरुण भिक्षुओं के लिए अत्यन्त हितकर है / इन सावधानियों से युक्त जीवन बनाने पर संयम बाधक विकारोत्पत्ति होने की संभावना प्रायः नहीं रहती है। निबंध- 48 10 कल्पों का स्वरुप और विवेक (बहत्कल्प सूत्र, उद्दे.४, सूत्र-१८-१९)जो साधु आचेलक्य आदि दस प्रकार के कल्प में स्थित होते हैं और पँच याम रूप धर्म का पालन करते हैं ऐसे प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के साधुओ को कल्पस्थित कहते हैं। जो आचेलक्यादि दस प्रकार के कल्प में स्थित नहीं है किन्तु कुछ ही कल्पों में स्थित हैं और चातुर्याम रूप धर्म का पालन करते हैं ऐसे मध्यवर्ती बाईस तीर्थंकरों के साधु अकल्पस्थित कहे जाते हैं। दस कल्प(साधु के आचार):-(१) अचेलकल्प- अमर्यादित वस्त्र न रखना किन्तु मर्यादित वस्त्र रखना। रंगीन वस्त्र न रखना किन्तु स्वाभाविक रंग का अर्थात् सफेद रंग का वस्त्र रखना। मूल्यवान चमकीले वस्त्र न रखना किन्तु अल्प मूल्य के सामान्य वस्त्र रखना। (2) औद्देशिक कल्प- अन्य किसी भी [181