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________________ आगम निबंधमाला 14. निशीथ सूत्र उद्देशा 11 में- रात्रि भोजन करने का एवं उसकी प्रशंसा करने का गुरु चौमासी प्रायश्चित्त कहा है / 15. दशाश्रुतस्कंध सूत्र दशा 6 में- श्रावक को पाँचवी पडिमा धारण करने में रात्रि भोजन का पूर्ण त्याग करना आवश्यक कहा गया है / उसके पूर्व अवस्थाओं में भी श्रावक को रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिए किन्तु वहाँ तक ऐच्छिक है और पाँचवी प्रतिमा से लेकर ग्यारहवी प्रतिमा तक उसे रात्रि भोजन का त्याग करना आवश्यक हो जाता है / अन्य ग्रंथो में :1. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 383 में- रात्रि भोजन त्याग को 6 महिने उपवास के तुल्य बताया है / 2. महाभारत के शान्ति पर्व में- नरक में जाने के चार बोल कहे हैं जिनमें प्रथम बोल से रात्रि भोजन को नरक में जाने का कारण कहा है शेष तीन कारण नरक गमन के ये कहे हैं- 1. पर स्त्री गमन, 2. आचार अथाणा खाना, 3. कंद मूलभक्षण / 3. वेद व्यास के योग शास्त्र अ. 3 में- कहा गया है कि रात्रि में खाने वाला मनुष्य-उल्लू कौआ, बिल्ली, गीदड़, सूकर, सर्प, बिच्छु आदि योनियों में जन्म धारण करता है / 4. मनुस्मति में- कहा है कि रात्रि राक्षसी होती है अत: रात्रि के समय श्राद्ध नहीं करना / 5. योग शास्त्र अ. 3 में- कहा गया है कि- नित्य रात्रि भोजन त्याग करने से अग्निहोत्र का फल मिलता है एवं तीर्थ यात्रा का फल मिलता है / आहुति, स्नान, श्राद्ध, देवता पूजन, दान एवं भोजन ये रात्रि में नहीं किए जाते / कीट पतंग आदि अनेक सत्वों का घातक यह रात्रि भोजन अति निदित है। 6. मार्कंडेय मुनि ने तो रात्रि में पानी पीना खून के समान और खाना मास के तुल्य कह दिया / 7. बौद्ध मत के "मज्झमनिकाय" एवं “लकुटिकोपम सुत्त" मेंरात्रि भोजन का निषेध किया है। [275
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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