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________________ आगम निबंधमाला कर देना भी-धार्मिक प्रवति को लौकिक प्रवति बना देना मानना चाहिए / यथा-अठाई आदि विभिन्न तपस्याओं के साथ आडबर, दिखावा, श्रगार एवं आरम्भ समारंभ की प्रवतियों को जोड़कर उसे विकृत कर देना भगवदाज्ञा के बाहर है, विपरीत है, ऐसा समझना चाहिए / ___ अतः धार्मिक किसी भी प्रवति में लौकिक रुचिएँ, लौकिक प्रवतिएँ नहीं मिलानी चाहिए / यथा- मेंहदी लगाना, वस्त्राभूषण वद्धि करना, बेंड बाजे आदि / तात्पर्य यह है कि धार्मिक प्रवति को समस्त लौकिक प्रवतियों से पूर्ण मुक्त रखना चाहिए और लौकिक रुचि से की जाने वाली प्रवति को धर्म न समझ कर केवल सांसारिक या लौकिक प्रवति ही समझना चाहिए / - हेतु शुद्धि के लिए प्रत्येक प्रवृत्ति में अंतर्मन को ज्ञान चेतना से जागत रख कर सही चिंतन जमा लेना चाहिए। और अशुद्ध चिंतनों को विवेक के साथ दूर कर शुद्ध में परिवर्तित कर देना चाहिए / निबंध- 45 रात्रि भोजन . रात्रि भोजन करने से प्राणातिपात आदि मूलगुणों की विराधना होती है तथा छठा रात्रि भोजन विरमण व्रत भी मूलगुण है, उसका भंग होता है / रात्रि में कुंथुए आदि सूक्ष्म प्राणी तथा फूलण आदि का शोधन होना अशक्य होता है / रात्रि में आहार की गवेषणा करने में एषणा समिति का पालन भी नहीं होता है। चूर्णिकार ने कहा है- “जो प्रत्यक्ष ज्ञानी होते है वे आहारादि को विशुद्ध जानते हुए भी रात्रि में नहीं खाते, क्यों कि मूलगुण का भंग होता है / तीर्थंकर, गणधर और आचार्यों से यह रात्रि भोजन अनासेवित है, इससे छठे मूलगुण की विराधना होती है, अतः रात्रि भोजन नहीं करना चाहिए।" आगमों में रात्रि भोजन त्याग का वर्णन :1. दशवैकालिक सूत्र अ. 3 में- रात्रि भोजन निर्ग्रन्थ के लिये अनाचरणीय कहा गया ह / 2. दशवैकालिक अ. 6 में- रात्रि भोजन करने से निर्ग्रन्थ अवस्था से | 173
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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