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________________ आगम निबंधमाला अध्ययन की कमी एवं आगम निष्ठा की कमी से उत्पन्न होने वाली भूल है। अतः जिनशासन के हितैषी अधिकारियों को आगम के गंभीर अध्ययनपूर्वक संघ व्यवस्था में अग्रसर होना चाहिए एवं प्रत्येक प्रवृत्ति निर्ग्रन्थ प्रवचन को आगे रखकर अर्थात् शास्त्र को प्रमुख रखकर ही करनी चाहिए। ___ शास्त्र का गम्भीर अध्ययन अनुभव किए बिना अपनी-अपनी बुद्धि से या बहुमत से अन्यान्य प्रवृत्तियाँ प्रारम्भ नहीं करनी चाहिए। निबंध- 25 सिंघाडा प्रमुख की योग्यता एवं विवेक 1. व्यवहार सूत्र उद्देशक-३, सूत्र-१,२ में कहा गया है कि यदि कोई भिक्षु गण प्रमुख के रूप में विचरना चाहे तो उसका पलिछन्न होना आवश्यक है अर्थात् जो शिष्य सम्पदा और श्रुत सम्पदा सम्पन्न है वही प्रमुख रूप में विचरण कर सकता है। यहाँ भाष्यकार ने शिष्य'सम्पदा एवं श्रुत सम्पदा के चार भंग कहे हैं उनमें से प्रथम भंग के अनुसार जो दोनों प्रकार की सम्पदा से युक्त हो उसे ही प्रमुख रूप में विचरण करना चाहिए। . यदि पृथक्-पृथक् शिष्य करने की परम्परा न हो तो श्रुत सम्पन्न एवं बुद्धिमान भिक्षुगण के कुछ साधुओं को लेकर उनकी प्रमुखता करता हुआ विचरण कर सकता है। जिस भिक्षु के एक या अनेक शिष्य हों वह शिष्य सम्पदा युक्त कहा जाता है। जो आवश्यक सूत्र, दशवैकालिक सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र तथा आचारांग सूत्र और निशीथ सूत्र के मूल एवं अर्थ को धारण करने वाला हो अर्थात् जिसने इतना मूल श्रुत उपाध्याय की निश्रा से कंठस्थ धारण किया हो एवं आचार्य या उपाध्याय से इन सूत्रों के अर्थ की वाचना लेकर उसे भी कंठस्थ धारण किया हो एवं वर्तमान में वह श्रुत उसे उपस्थित हो तो वह श्रुत सम्पन्न कहा जाता है। जिसके एक भी शिष्य नहीं है एवं उपर्युक्त श्रुत का अध्ययन भी जिसने नहीं किया है वह गण धारण के अयोग्य हैं। ___ यदि किसी भिक्षु के शिष्य सम्पदा है किन्तु वह बुद्धिमान एवं श्रुत. सम्पन्न नहीं है अथवा धारण किए हुए श्रुत को भूल गया है, वह भी गण धारण के अयोग्य है। किन्तु यदि किसी को वृद्धावस्था (60 वर्ष से अधिक) 120
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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