________________ श्रीसंपदा - समणी मंगलप्रज्ञा की अध्ययन-रुचि, ग्रहणशीलता और भावाभिव्यक्ति की क्षमता ने जैन दर्शन के विविध पक्षों पर कार्य किया है / 'आहती-दृष्टि' उनकी पहली पुस्तक है। इसमें इक्यावन निबंध हैं / हर व्यक्ति में सत्य को खोजने और तथ्यों को संकलित करने की मनोवृत्ति होती है। पुराना लेखक बहुत खोज सकता है और नया कम, ऐसा कोई नियम नहीं है। नए लेखक भी अपनी प्रतिभा का उपयोग करते हैं और कुछ अनजाने तत्त्वों को जानकारी के क्षेत्र में ले जाते हैं। समणी मंगलप्रज्ञा ने काफी श्रम किया है / उनके श्रम की बूंदें पाठक के मन को भी अभिषिक्त कर पाएंगी, ऐसा विश्वास आचार्य महाप्रज्ञ जैन विश्व भारती लाडनूं ( राजस्थान) 15 अप्रैल 1998