________________ 236 / आर्हती-दृष्टि हुआ है। नन्दी चूर्णि में ज्ञान की व्युत्पत्तिपरक परिभाषा उपलब्ध होती है। जिसके द्वारा जाना जाता है, वह ज्ञान है। यह परिभाषा करण साधन के आधार पर है। अधिकरण साधन के द्वारा ज्ञान को पारिभाषित करते हुए कहा गया जिसमें जानता है वह ज्ञान है।" भाव साधन में जानने मात्र को ज्ञान कहा गया है। करण साधन की स्पष्टता करते हुए कहा गया है कि क्षायोपशमिक एवं क्षायिक भाव के द्वारा जीवादि पदार्थों को जानना ज्ञान है।" ज्ञान की ये परिभाषाएं. वस्तुजगत् के साथ सम्बन्ध की द्योतक हैं। पाश्चात्य परम्परा __ पाश्चात्य दर्शन में ज्ञान-मीमांसा दर्शन की मुख्य शाखा के रूप में विकसित हुई है। इसमें ज्ञान पर बहुविध विचार हुआ है ।सुकरात पूर्व के ग्रीक दर्शन में हम ज्ञान-मीमांसा के स्वरूप का अवलोकन करते हैं तो ज्ञात होता है कि उनकी ज्ञान सम्बन्धी अवधारणा आत्मकेन्द्रित थी। प्रोटागोरस प्रथम सोफिस्ट एं। उनके दर्शन का सार है मानव सब पदार्थों का मापदण्डं है। (Man is the measure of all things) उन्होंने मनुष्य को ही सर्वोत्कृष्ट माना है। इस विचारधारा से उनकी ज्ञान-मीमांसा भी प्रभावित हुई है। इलियाई मत के अनुसार इन्द्रिय तथा बुद्धि दोनों ही ज्ञान-प्राप्ति के साधन हैं। सत् का ज्ञान बुद्धि से तथा परिणाम का ज्ञान इन्द्रियों द्वारा होता है / इसके विपरीत हेराक्लाइटंस के अनुसार परिणाम का ज्ञान बुद्धि द्वारा प्राप्त होता है ।डिमाक्रिट्स परमाणुओं का ज्ञान बुद्धि से तथा स्थूल वस्तुओं का ज्ञान इन्द्रियों से मानते हैं। प्रोटागोरस बुद्धि और इन्द्रिय के भेद का खण्डन करते हैं। उसके अनुसार मनुष्य सब पदार्थों का मापदण्ड है। अतः वही सत्य है जो उसे सत्य प्रतीत होता है / सत्य तो व्यक्ति की संवेदना और अनुभूति तक ही सीमित है / अतः सत्य व्यक्तिगत है। वस्तुगत नहीं है। ज्ञान के क्षेत्र में साफिस्ट लोगों ने एक बड़े ही विवादास्पद सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है / उनके अनुसार सत्य तो संवेदनाजन्य है। संवेदनाएं व्यक्तिगत होती हैं अतः सत्य आत्मकेन्द्रित है। ___ सुकरात के दर्शन में ज्ञान विचार सबसे महत्त्वपूर्ण विचार है। ज्ञान के क्षेत्र में सकरात का मत दो ज्ञान का सिद्धान्त (Doctrine of two knowledge) कहलाता है। उनके अनुसार ज्ञान के दो रूप हैं—बाह्य और आन्तरिक / बाह्य ज्ञान अस्पष्ट; संदिग्ध, इन्द्रियजन्य तथा लोक आधारित है। यह ज्ञान परिवर्तनशील है। आन्तरिक ज्ञान तर्कसंगत एवं यथार्थ ज्ञान है। सुकरात ज्ञान को प्रत्ययात्मक जाति रूप मानते