________________ ज्ञानस्वरूप विमर्श मानव-संस्कृति ज्ञान की उपासक रही है। द्रष्टा पुरुषों ने ज्ञान-सम्प्राप्ति के लिए अपने आपको सर्वात्मना समर्पित कर दिया। ज्ञान के प्रति समर्पण भाव ने अनेक अज्ञातं रहस्यों का उद्घाटन किया। तत्त्व चिन्तन का आधार ज्ञान-मीमांसा ही रही। तत्त्व-मीमांसा एवं ज्ञान-मीमांसा दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं / ज्ञान-सिद्धान्त ने सर्वदा तत्त्व-मीमांसा का अनुगमन किया है। वह उसका अंग बनकर रहा है। वस्तुतः तत्त्व-मीमांसा का अध्ययन ज्ञान-सिद्धान्त के अभाव में अपूर्ण है / तत्त्व-मीमांसा से ज्ञान-मीमांसा को वियुक्त नहीं किया जा सकता। ज्ञान-मीमांसा तत्त्व-मीमांसा का आवश्यक अंग है / यथार्थ ज्ञान के द्वारा ही हम सत् के स्वरूप का निर्णय कर सकते ... ज्ञान-मीमांसा केवल दार्शनिक ज्ञान का ही नहीं वरन् समस्त ज्ञान मात्र का आधार है / ज्ञान के सम्बन्ध में उपस्थित होनेवाले विभिन्न प्रश्नों की मीमांसा करना ज्ञान-मीमांसा का उद्देश्य है। ज्ञान-मीमांसा के बहुचर्चित विषय हैं-ज्ञाता का ज्ञेय से क्या सम्बन्ध है ? ज्ञान की सीमाएं क्या हैं ? ज्ञान के स्रोत क्या हैं? हम कैसे जान सकते हैं कि हमारा ज्ञान वस्तु का यथार्थ ज्ञान है? क्या ज्ञाता का ज्ञान सम्भव है? ज्ञान क्या है? इन विभिन्न प्रश्नों से ज्ञान-मीमांसा का विषय-क्षेत्र स्पष्ट हो सकता है। ज्ञान-मीमांसा की विषय सामग्री-ज्ञान की प्रक्रिया, उसके स्रोत, आलम्बन, लक्षण, . प्रामाणिकता, अयथार्थता आदि हैं। इनका विवेचन ही ज्ञान-मीमांसा है। ____भारतीय दर्शन मोक्षवादी है। उसकी सारी प्रवृत्ति-निवृत्ति का केन्द्रबिन्दु बन्धन-मुक्ति की अवधारणा है। ज्ञान-स्वरूप-चिन्तन में भी हमें इस अवधारणा का दर्शन होता है / मोक्ष तत्त्व में संलग्न धी/बुद्धि ज्ञान है और शिल्प शास्त्र में प्रवण बुद्धि विज्ञान है। चेतन और अचेतन के अन्यत्व का विज्ञान ही ज्ञान कहलाता है।' योगशास्त्र में ज्ञान को परिभाषित करते हुए कहा गया—बुद्धि.मन, इन्द्रियां एवं व्यापी आत्मा का एकत्व ही सर्वोत्कृष्ट ज्ञान है। योगशास्त्र में इस ज्ञान को ही मोक्ष धर्म कहा गया हैं। साधना के क्षेत्र में ज्ञान की अवधारणा का स्वरूप मोक्ष प्राप्ति की ओर ले जाने के रूप में ही रहा है। ज्ञानवादी चिन्तकों ने तो यहां तक कहा-'ऋते