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________________ दो शब्द (दूसरा संस्करण, 1989 से) भारतवर्ष में जाति-प्रथा बहुत पुरानी है। ब्राह्मण धर्म के प्रसार के साथ समग्र देश में इसका प्रचार और प्रसार हुआ। वास्तव में ब्राह्मण धर्म का मूल आधार ही जाति-प्रथा है। इस धर्म का साहित्य और ऐतिहासिक तथ्य इसके साक्षी हैं। पर पिछली शताब्दियों के सामाजिक और राष्ट्रीय इतिहास को देखने से ज्ञात होता है कि जाति-प्रथा देश और मानव-समाज के लिए परिणाम अच्छा नहीं लायी। ____ यह तो स्पष्ट ही है कि जैनधर्म का जाति-धर्म के साथ थोड़ा भी सम्बन्ध नहीं है। मूलं जैन साहित्य इसका साक्षी है। किन्तु मध्यकाल में जाति-धर्म का व्यापक प्रचार होने के कारण यह भी उससे अछूता न रह सका। इस काल में और इसके बाद जो जैन साहित्य लिखा गया, उसमें इसकी स्पष्ट छाया दृष्टिगोचर होती है। उत्तरकालीन कितने ही आचार्य, जो जैनधर्म के सर्वमान्य आधार-स्तम्भ रहे, उन्हें भी किसी-न-किसी रूप में इसे प्रश्रय देना पड़ा। वर्तमान में जैनधर्म के अनुयायियों में जो जाति-प्रथा का प्रचार और उसके प्रति आग्रह दिखाई देता है, यह उसी का फल है। ... समय बदला और अब देश यह सोचने लगा है कि जाति-प्रथा का अन्त कैसे किया जाये। यह सत्य है कि वैदिक सम्प्रदाय के भीतर जैसे-जैसे जाति-प्रथा का मूलोच्छेद होता जायेगा वैसे-वैसे जैन समाज भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। किन्तु यह स्थिति बहुत अच्छी * महीं। यह अनुवर्तीपन जैन समाज को कहीं का भी नहीं रहने देगा। वस्तुतः उसे इसका विचार अपने धर्मशास्त्र के आधार से ही करना वाहिए। धर्म के प्रति उसकी निष्ठा बनी रहे यह सर्वोपरि है।
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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