________________ गृहस्थोंके आवश्यककर्मोंकी मीमांसा * सपनं पूजनं स्तोत्रं जपो ध्यानं श्रुतस्तपः / षोढा क्रियोदिता सद्भिर्देवसेवासु गेहिनाम् // देवसेवा, गुरुकी उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान ये गृहस्थों . के प्रतिदिन करने योग्य छह कर्म हैं। सज्जनोंने देवसेवाके समय स्नपन, पूजन, स्तोत्र, जप, ध्यान और श्रुतकी स्तुति ये छह क्रियाएँ गृहस्थोंकी कही गई हैं। -आश्वास पृ० 414 नित्याष्टान्हिकसच्चतुर्मुखमहः कल्पद्रुन्मैद्रध्वजाविज्याः पात्रसमक्रियान्वयदयादत्तीस्तपःसंयमान् / स्वाध्यायं च विधातुमाइतकृषीसेवावणिज्यादिकः / शुद्धयाप्तोदितया गृही मललवं पक्षादिभिश्च क्षिपेत् // 1-18 // नित्यमह, अष्टाह्निकमह, चतुर्मुखमह, कल्पद्रुमपूजा और इन्द्रध्वजपूजा इन पाँच प्रकारकी पूजाओंको तथा पात्रदत्ति, समक्रियादत्ति, अन्वयदत्ति और दयादत्ति इन चार प्रकारकी दत्तियोंको तथा तप, संयम और स्वाध्यायको करने के लिए जिसने कृषि, सेवा और व्यापार आदि कर्म स्वीकार किये हैं ऐसा गृहस्थ प्राप्तके द्वारा कही गई शुद्धिके द्वारा तथा पक्षादि रूप चर्या के द्वारा अपने पापलेशका नाश करता है // 1-18|| तत्रादौ श्रद्दधजैनीमाज्ञां हिंसामपासितुम् / मद्यमांसमधन्युज्झत्पञ्चक्षीरफलानि च // 2-2 // सर्व प्रथम जिनेन्द्रदेवकी आज्ञाका श्रद्धान करनेवाला यह गृहस्थ हिंसाका त्याग करनेके लिए. मद्य, मांस, मधु और पाँच क्षीर फलोंका त्याग करे // 2-2 // एतेनैतदुक्तं भवति तादृग्जिनाज्ञाश्रद्धानेनैव मद्यादिविरतिं कुर्वन् देशव्रती स्यात् न कुलधर्मादिवुद्धया // 2-2 टीका॥