________________ आहारग्रहणमीमांसा वरं स्वहस्तेन कृतः पाको नान्यत्र दुर्दशाम् / . मन्दिरे भोजनं यस्मात्सर्वसावद्यसङ्गमः // 6 // (नीतिसार० श्लो० 42) शाली, माली, कुम्हार, तेली और नाई ये पाँच कारु शूद्र जानने चाहिए / धोबी, तक्षक, लुहार, सुनार और कारीगिर इत्यादि बहुत प्रकारके कारु शूद्र जानने जाहिए // 3, 4 // मोक्षकी इच्छा रखनेवाले साधु इनके घरमें भोजन कर लेते हैं। इसी प्रकार और भी अपने मनसे जान लेना चाहिए // 5 // अपने हाथसे भोजन बना लेना उत्तम है, परन्तु मिथ्यादृष्टियोंके घरमें भोजन करना उत्तम नहीं है, क्योंकि वहाँ पर सब प्रकारके सावद्यका समागम देखा जाता है // 6 // -बोधप्राभूत टीका ...."चाण्डालनीचलोकमार्जारशुनकादिस्पर्शरहितं यतियोग्यं भोज्यम् / चाण्डाल, नीचलोक, बिल्ली और कुत्ता आदिके स्पर्शसे रहित भोजन साधुके योग्य होता है। -स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा टीका चंडालअण्णपाणे भुत्ते सोलस हवंति उपवासा / चंडालाणं पत्ते भुत्ते अट्ठव उववासा // 336 // चाण्डालका अन्न-पानके भोजन करने पर सोलह उपवास करने चाहिए। तथा चाण्डालके पात्रमें भोजन करने पर आठ ही उपवास करने चाहिए // 336 // -छेदपिण्ड कारुयपत्तम्मि पुणो भुत्ते पीदे वि तस्थ मलहरणं / पंचुववासा णियमा णिदिवा छेदकुसलेहिं // 5 // कारुशूद्रके पात्रमें भोजन करने पर और उससे पानी पीने पर भी छेदशास्त्रमें कुशल पुरुषोंने पाँच उपवास उसका प्रायश्चित्त कहा है // 8 // -छेदशास्र