________________ 426 वर्ण, जाति और धर्म णावियकुलालतेलियसालियकल्लाललोहयाराणं / . मालारप्पहुदीणं तवदाणे विणि गुरुमासा // 221 // चम्मारवरुङछिपियखत्तियरजगादिगाण चत्तारि / कोसट्टयपारद्धियपासियसावणियकोलयादिसु अटुं // 222 // चंडालादिसु सोलस गुरुमामा वाहडोववाउरिया। प्पहुर्दाणं बत्तीसं गुरुमासा होति तवदाणे // 223 // चउसट्ठी गुरुमासा गोक्खयमायंगखट्टिकादोणं / णिग्गंथदिक्खिदाणे पायच्छित्तं समुट्ठि // 224 // ... अतिबालक, वृद्ध, दास, गर्भिणी स्त्री, नपुंसक और कारु शूद्रोंको दीक्षा देनेवाले आचार्यको छह गुरुमास नामक प्रायश्चित कहा गया है // 216 // ___दूसरे प्राचार्य कहते हैं कि जो इन सबको और कारु शूद्रोंको दीक्षा देता है उसे एक गुरुमास नामक प्रायश्चित देना चाहिए और उसे संघसे अलग कर देना चाहिए // 220 // जो नाई, कुम्हार, तेली, शालिक, कलारं, लुहार और मालीको दीक्षा देता है उसके लिए दो गुरुमास नामक प्रायश्चित्त कहा गया है // 221 // जो चाहार, वरुड, छिपी, कारीगिर और धोबी आदिको जिनदीक्षा देता है उसे चार गुरुमासनामक प्रायश्चित्त कहा गया है। तथा जो कोशरुक, पारधी, नकली साधु, श्रावणिक और कोलको दीक्षा देता है उसे आठ गुरुमास नामक प्रायश्चित्त कहा गया है // 222 // चाण्डाल आदिको जिनदीक्षा देनेपर सोलह गुरुमास तथा गाड़ीवान, डोंव और व्याध आदिको जिनदीक्षा देनेपर बत्तीस गुरुमासनामक प्रायश्चित कहा गया है // 223 // गायको मारनेवाले, मातङ्ग और खटीकको निर्ग्रन्थ दीक्षा देनेपर कैसठ गुरुमासनामक प्रायश्चित कहा गया है // 224 // .. -छेदपिण्ड