________________ 364 वर्ण, जाति और धर्म तेषां कृतानि चिह्नानि सूत्रैः पद्माह्वयानिधेः : उपात्तैब्रह्मसूत्राद्वैः एकाद्येकादशान्तकैः // 38-21 // तथा पद्म नामकी निधिसे प्राप्त हुए किन्हींको एक ब्रह्मसूत्रसे, किन्हीं को दो ब्रह्मसूत्रोंसे और किन्हींको तीन चार आदि ग्यारह ब्रह्मसूत्रोंसे चिह्नित किया // 38-21 // गुणभूमिकृताद् भेदात् क्लुप्तयज्ञोपवीतिनाम् / सत्कारः क्रियते स्मैषां अवताश्च बहिःकृताः // 38-22 // : जिनकी जितनी प्रतिमा थीं उनके अनुसार यज्ञोपवीत धारण करनेवाले उन श्रावकोंका सत्कार किया और अवतियोंको बाहर कर दिया // 38-22 // अथ ते कृतसम्मानाः चक्रिणा व्रतधारिणः / भजन्ति स्म परं दाढ्य लोकश्चैनानपूजयत् // 38-23 // . इस प्रकार चक्रवर्ती के द्वारा सन्मानको प्राप्त हुए वे सब ब्रती अपने अपने व्रतोंमें और भी दृढ़ हो गये तथा अन्य लोग भी उनका आदर करने लगे // 38-23 // इज्यां वर्ता च दत्तिं च स्वाध्यायं संयमं तपः / श्रुतोपासकसूत्रत्वात् स तेभ्यः समुपादिशत् // 38-24 // कुलधर्मोऽयमित्येषां अर्हत्पूजादिवर्णनम् / ततः भरतराजर्षिः अन्ववोचदनुक्रमात् // 38-25 // उपासकाध्ययन सूत्रका विषय होनेसे भरतने उन्हें इज्या, वार्ता, दत्ति, स्वाध्याय, संयम और तपका उपदेश दिया // 38-24 // यह इनका कुल धर्म है ऐसा विचार कर राजर्षि भरतने उस समय उनके समक्ष अनुक्रमसे अर्हत्पूजा आदिका व्याख्यान किया // 38-25 // वर्णोसमत्वं वर्णेषु सर्वेष्वाधिक्यमस्य वै / तेनायं श्लाघतामेति स्वपरोद्धारणक्षमः / / 40-182 //