________________ 346 वर्ण, जाति और धर्म 166 // ऋषिशृङ्ग आदि मनुष्य ब्राह्मण हैं यह बात गुणके सम्बन्धसे कही . ' जाती है, ब्राह्मण योनिमें उत्पन्न होनेसे नहीं // 11-200 // . न जातिगर्हिता काचिद् गुणाः कल्याणकारणम् / व्रतस्थमपि चाण्डालं तं देवा ब्राह्मणं विदुः // 11-203 // विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि / शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः // 11-204 // कोई जाति गर्हित नहीं होती। वास्तवमें गुण कल्याणके कारण हैं, क्योंकि भगवान् जिनेन्द्रने व्रतोंमें स्थित चाण्डालको ब्राह्मण माना है // 11-203 / / विद्या और विनयसे सम्पन्न ब्राह्मण,, गौ, हाथी, कुत्ता और चाण्डाल जो भी हो, पण्डित जन उन सबमें समदर्शी होते हैं // 11-204 // -पद्मपुराण विशुद्धवृत्तिरेषेषां षट्तयोष्टा द्विजन्मनाम् / योऽतिक्रमेदिमां सोऽज्ञो नाम्नैव न गुणैर्द्विजः // 38-42 // तपः श्रुतं चा जातिश्च त्रयं ब्राह्मण्यकारणम् / तपः- श्रुताभ्यां यो हीनो जातिब्राह्मण एव सः // 38-43 // अपापोहता वृत्तिः स्यादेषां जातिरुत्तमा / . दत्तीज्याधीतिमुख्यत्वाद् व्रतशुद्धया सुसंस्कृता // 38-44 // तपः-श्रुताभ्यामेवातो जातिसंस्कार इष्यते / असंस्कृतस्तु यस्ताभ्यां जातिमात्रेण स द्विजः // 38-47 // द्विजातो हि द्विजन्मेष्टः क्रियातो गर्भतश्च यः। क्रियामन्त्रविहीनस्तु केवलं नामधारकः 38-48 // यह पूर्वोक्त छह प्रकारकी विशुद्ध वृत्ति इन द्विजोंके द्वारा करने योग्य है। जो इसका उल्लंघन करता है वह मूर्ख नाममात्रका द्विज है, गुणोंसे द्विज नहीं है।।३८-४२॥ तप, श्रुत और जाति ये तीन ब्राह्मण होने के कारण हैं। जो तप और श्रुतसे रहित है वह केवल जातिसे ही ब्राह्मण है // 38-43 //