________________ कुल-मीमांसा 336 देसकुलजाइसुद्धो सोमंगो संगभंग उम्मुक्को / गयण व्व गिरुवलेवो आइरिया एरिसो होइ // जो देश, कुल और जातिसे शुद्ध है, सौम्यमूर्ति है, अन्तरंग और बहिरंग परिग्रहसे रहित है और आकाश के समान निर्लेप है ऐसा प्राचार्य परमेष्ठी होता है। --धवला प्र० पुस्तक पृ० 46 उद्धृत बारसविहं पुराणं जगदिळं जिणवेरहिं सव्वेहिं / तं सव्वं वण्णेदि हु जिणवंसे रायवंसे य // पढमो अरहंताणं विदियो पुण चक्कवहिवंसो दु / विज्जाहराण तदियो चरत्ययो वासुदेवाणं // चारणवंसो तह पञ्चमो दु छ8ो य पण्णसमणाणं / सत्तमओ कुरुवंसो अट्ठमओ तह य हरिवंसो॥ णवमो य इक्खयोणं दसमो वि य कासियाण बोद्धव्यो / वाईणेक्कारसमो जारसमो णाहवंसो दु॥ जिनेन्द्रदेवने जगतमें बारह प्रकारके पुराणोंका उपदेश दिया है / वे सब पुराण जिनवंशों और राजवंशोंका वर्णन करते हैं / पहला अरिहतोंका, दूसरा चक्रवर्तियोंकी, तीसरा विद्याधरोंका, चौथा वासुदेवोंका, पाँचवाँ चारणोंका और छठा प्रज्ञाश्रमणोंका वंश है / इसी प्रकार सातवाँ कुरुवंश, आठवाँ हरिवंश, नौवाँ इक्ष्वाकुवंश, दसवाँ काश्यपवंश, ग्यारहवाँ वादियोंका वंश और बारहवाँ नाथवंश है। -धवला प्र० पु० पृ० 112 उद्धत - तत्थ कुलं पञ्चविहं-पञ्चथूहकुलं गुहावासीकुलं सालमूलकुलं असोगवाडकुलं खण्डकेसरकुलं / कुल पाँच प्रकारका है—पञ्चस्तूप कुल, गुफावासी कुल, शालमूल कुल, अशोकवाट कुल और खण्डकेशर कुल / -कर्म अनुयोगद्वार सूत्र 136 पु० 13 धवला