________________ वर्ण, जाति और धर्म गतिमार्गणाके अनुवादसे मनुष्यगतिमें चौदह ही गुणस्थान होते हैं। -सर्वार्थसिद्धि णररासी सामण्णं पजत्ता मणुसिणी अपजत्ता। इय चउविहभेदजुदो उप्पज्जदि माणुसे खेत्ते // 2625 // . . सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी और अपर्याप्त मनुष्य इस प्रकार चार प्रकारकी मनुष्यराशि मनुष्य क्षेत्रमें उत्पन्न होती है // 2625 / / - --तिलोयपण्णत्ती प्र० पु० हुण्डावसर्पिण्या स्त्रीषु सम्यग्दृष्टयः किन्नोत्पद्यन्त इति चेत्, न उत्पद्यन्ते / कुतोऽवसीयते ? अस्मादेवार्षात् / अस्मादेवार्षाद् द्रव्यस्त्रीणां निर्वृत्तिः सिद्धयेदिति चेत् 1 न, सवासस्त्वादप्रत्याख्यानगुणस्थितानां : संयमानुपपत्तेः। भावसंयमस्तासां सवाससामप्यविरुद्ध इति चेत्, न तासां भावसंयमोऽस्ति, भावासंयमाविनाभाविवस्त्राद्युपादानान्यथानुपपत्तेः / कथं पुनस्तासु चतुर्दश गुणस्थानानीति चेत् ? न, भावस्त्रीविशिष्टमनुष्यगतौ तस्सत्त्वाविरोधात् / भाववेदो बादरकषायानोपर्यस्तीति न तत्र चतुर्दशगुणस्थानानां सम्भव इति चेत् ? न, अत्र वेदस्य प्राधान्याभावात् / गतिस्तु प्रधाना, न साराद्विनश्यति। वेदविशेषणायां गतौ न तानि सम्भवन्तीति चेत् ? न, विनष्टेऽपि विशेषणे उपचारेण तद्वयपदेशमादधानमनुष्यगतौ तत्सत्त्वाविरोधात् / शंका-हुण्डावसर्पिणीके दोषसे सम्यग्दृष्टि जीव मरकर स्त्रियोंमें क्यों नहीं उत्पन्न होते ? समाधान-नहीं उत्पन्न होते। शंका-किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-इसी आर्षवचनसे जाना जाता है / शंका-इसी पार्षवचनसे द्रव्यस्त्रियोंका मुक्त होना सिद्ध हो जावे ? समाधान-- नहीं, क्योंकि सवस्त्र होनेसे उनके संयंतासंयत तक पाँच गुणस्थान होते हैं, अतः उनके संयमकी उत्पत्ति नहीं हो सकती।